शलजम (Turnip) भारत के अधिकतर हिस्सों की फसल है| यह एक जड़ का फल या सब्जी है, जिसका उपयोग सलाद या सब्जी के रूप में किया जाता है| शलजम विटामिन और खनिज का स्रोत है| इसका वनस्पति भाग पशुओं के लिए पौष्टिक आहर है|
किसान भाई आधुनिक तकनीकी से इसकी खेती कर के अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते है| इसकी आधुनिक खेती से सम्बंधित कुछ सुझाव से आप को अवगत कराना चाहते है| जिनको उपयोग में लाकर आप अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है|
शलजम की खेती के लिए जलवायु और भूमि
1. शलजम की खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है| ठंडी जलवायु में इसकी उपज अच्छी मिलती है| इसके लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्शियस तक उपयुक्त रहता है|
2. इसको विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है| फिर भी अच्छी उपज के लिए भुरभुरी और जीवांशयुक्त उपजाऊ दोमट और हल्की रेतीली मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है|
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शलजम की खेती के लिए खेत की तैयारी
1. शलजम की खेती के लिए खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए| इसके लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए| इसके बाद 3 से 4 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए और पाटा लगा देना चाहिए|
2. इसकी खेती के लिए 250 से 300 क्विंटल कम्पोस्ट या गोबर की गली सड़ी खाद पहली या दूसरी जुताई में डालनी चाहिए| ताकि वह मिट्टी में अच्छे से मिल जाए| इसके बाद 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए|
आखरी जुताई में फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा देनी चाहिए| नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बार में खड़ी फसल में देनी चाहिए| पहली आधी जब पौधों के 4 से 5 पत्ती निकल आए तब और बची हुई मात्रा फलों के विकास के समय देनी चाहिए|
शलजम की खेती के लिए किस्में और बुवाई
1. शलजम की एशियन या उष्णकटिबंधीय किस्में- पूसा स्वेती, पूसा कंचन, व्हाईट 4, रेड 4, शलजम एल- 1 और पंजाब सफेद आदि और यूरोपियन शीतोष्ण किस्में- गोल्डन, पर्पिल टाइप व्हाईट ग्लोब, स्नोबल, पूसा चन्द्रमा, पूसा स्वर्णिम, आदि प्रमुख है|
2. इस फसल के लिए 3 से 4 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहता है| इसके उपचार के लिए 3 ग्राम बाविस्टिन या कैप्टान से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिए|
3. इसकी बुवाई का समय सितंबर से अक्तूबर और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए जुलाई से अक्तूबर उपयुक्त रहता है| इसकी बुवाई में लाइन से लाइन की दुरी 30 से 40 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दुरी 10 से 15 सेंटीमीटर और गहराई 2 से 3 सेंटीमीटर रखनी चाहिए|
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शलजम की फसल में सिंचाई और खरपतवार
1. शलजम की बुवाई के 8 से 10 दिन बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए| बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के बाद सिंचाई करते रहना चाहिए|
2. इस फसल में 2 से 3 निराई गुड़ाई की आवश्यकता होती है| यदि खेत में ज्यादा खरपतवार होती है तो बुवाई के बाद 2 दिन तक पेंडीमेथलिन 3 लीटर को 800 से 900 लिटर पानी मे मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए|
शलजम फसल की देखभाल
1. इस फसल में पिला रोग, अंगमारी और फफूंदी जैसे रोग लगते है| इनकी रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिए और बीज को उपचारित कर कर बोना चाहिए| रोगी पौधों को उखाड़ कर मिट्टी में दबा देना चाहिए| इसके साथ साथ डाइथेन एम 45 या जेड 78 का 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए|
2. शलजम (Turnip) की फसल में माहू, मुंगी, बालदार कीड़ा, सुंडी और मक्खी जैसे किट लगते है| इनकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 1 लीटर का 700 से 800 लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए| इसके साथ साथ एंडोसल्फान 1.5 लीटर इतने ही पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए|
शलजम फसल की कटाई और पैदावार
1. शलजम की खुदाई जब इसकी जड़े खाने योग्य हो जाए तभी से खुदाई शुरू कर देनी चाहिए|
2. उपरोक्त विधि से खेती करने के पश्चात इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए|
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