सफेद मूसली (Safed Musli) को विभिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न नाम से जाना जाता है| एक अनुमान के अनुसार विश्वभर में सफेद मूसली की मांग 35,000 टन प्रति वर्ष है, जबकि उत्पादन या उपलब्धता मात्र 5000 टन ही है| एक-डेढ़ फीट ऊँचाई के इस पादप की जड़ें औषधीय महत्व की हैं| व्यावसायिक रुप से इसकी खेती हेतु उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, हरियाणा, दिल्ली एवं राजस्थान में पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों की जलवायु अनुकूल है|
जैसा की सफेद मूसली मूलतः कंद है, जो देश के जंगलों में प्राकृतिक रुप में उगता है| परन्तु नवीनतम् कृषि तकनीक का प्रयोग कर अच्छी एवं अधिक मात्रा में फसल प्राप्त की जा सकती है| इस लेख में सफेद मूसली की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें की जानकारी का उल्लेख किया गया है|
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सफेद मूसली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
सफेद मूसली मूलतः गर्म तथा आर्दै प्रदेशों का पौधा है| अतः उत्तरी भारत के लगभग सभी राज्यों में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है|
सफेद मूसली की खेती के लिए भूमि का चयन
कंदीय फसल होने के कारण सही विकास के लिए जमीन थोड़ी नर्म होनी चाहिए जिससे जड़े अधिक विकसित हो सकें| अच्छी जल निकासी वाली रेतीली व लवणीय मिट्टी जिसमें जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा हो, इसकी खेती के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है| मिट्टी का पी एच मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए| जल निकास की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए|
सफेद मूसली की खेती के लिए खेत की तैयारी
सफेद मूसली 8 से 9 महीने की फसल है| जिसे जून में लगाकर जनवरी से फरवरी में खोद लिया जाता है| अच्छी खेती के लिए यह आवश्यक है, कि खेतों की गर्मी में गहरी जुताई की जाय| अगर संभव हो तो हरी खाद के लिए ढेचा या सनई, सफेद मूसली लगाने के दो महीने पहले बो दें| जब पौधों में फूल आने लगे तो काटकर तथा खेत में डालकर मिला दें| गोबर की सड़ी खाद 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई में मिला दें|
खेतों में क्यारिया एक मीटर चौड़ी तथा एक फीट ऊँचा बनाकर 30 सेंटीमीटर की दूरी पर (कतार) एवं 15 सेंटीमीटर पर पौधे से पौधा को लगाते हैं| क्यारिया बनाने के पूर्व 3 क्वींटल प्रति हेक्टेयर की दर से नीम या करंज की खल्ली मिला दें| खेत में केंचुआ खाद 5 क्वींटल प्रति हैक्टेयर भी देना चाहिए|
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सफेद मूसली की खेती के लिए उन्नत किस्में
सफेद मूसली की कई किस्में देश में पाई जाती है| लेकिन च्लोरोपिटुम बोरीविलिअनुम का उत्पादन अधिक होता है| यह Liliaceae कुल का पौधा है| इसका छिलका उतारना भी आसान है| इसमें पाये जाने वाले उपयोगी औषधीय तत्वों की मात्रा भी दूसरी किस्मों से अधिक होती है|
इस किस्म में ऊपर से नीचे तक जड़ों या ट्यूवर्स की मोटाई प्रायः एक समान होती है| एक साथ कई ट्यूवर्स (2 से 50) गुच्छे के रूप में पाये जाते है, जो ऊपर से डिस्क या क्राउन से जुड़े रहती है| उत्पादन एवं गुणवत्ता की दृष्टि से M D H BIO- 13 किस्म अच्छी है|
सफेद मूसली की खेती के लिए बीज की मात्रा
व्यावसायिक खेती के लिए ट्यूवर्स (Tubers) की जरूरत होती है| डिस्क या क्राउन से लगी ट्यूवर्स को डिस्क के कुछ भाग के साथ काट लिया जाता है| कई बार एक-एक ट्यूवर्स भी अलग की जाती है तथा कभी 2 से 3 फीगर्स साथ रखते हैं| यही डिस्क सहित कटे ट्यूवर्स ही बीज के रूप में व्यवहार किए जाते हैं| प्रायः एक ट्यूवर का वजन 10 से 20 ग्राम होता है और एक हैक्टेयर के लिए 10 क्विंटल ट्यूवर बीज की जरूरत पड़ती है|
सफेद मूसली लगाने का तरीका
जैविक विधि में गौमुत्र (1:10) में 1 से 2 घंटे तक डूबोकर रखा जाता है| रसायनिक विधि में बाविस्टीन या स्ट्रोप्टोसाइक्लिन का 0.1 प्रतिशत के घोल में रखते हैं| बुआई के लिए गड्डे बना लिए जाते हैं| गड्डे की गहराई उतनी होनी चाहिए जितनी ट्यूवर्स की लम्बाई हो|
बीजों का रोपण कर इन गड्डों में कर हल्की मिट्टी डालकर भर दें| अरहर की एक लाईन सफेद मूसली के तीन लाईन के बाद बोया जा सकता है| जिससे मूसली के पौधों को छाया मिले और अरहर की पत्तियाँ गिरकर एक मल्च का भी काम करती है|
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सफेद मूसली की फसल में सिंचाई और निकाई-गुड़ाई
रोपाई के बाद टपका या स्प्रिंकलर सिंचाई द्वारा पानी दें| बुआई के 7 से 10 के अन्दर यह उगना प्रारंभ हो जाती है| उगने के 75 से 80 दिन तक अच्छी तरह बढ़ने के बाद सितम्बर के अन्त में पत्ते पीले होकर सूखने लगते हैं तथा 100 दिन के उपरांत पत्ते गिर जाते हैं| इसी तरह से पौधों को छोड़ दिया जाता है फिर जनवरी से फरवरी में जड़ें निकाली जाती है| फसल के उगने के 20 से 25 दिन बाद बायोजाइम क्रॉप प्लस 1 मिलीलीटर 1 लीटर पानी में या बायोजाइम ग्रैनुअल 20 से 30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर देने से अच्छे परिणाम मिलते हैं|
सफेद मूसली मध्य जून तक अवश्य लगाएं| नियमित वर्षा में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है| अनियमित मानसून में 10 से 12 दिन में एक सिंचाई दें| अक्टूबर के बाद 15 से 20 दिनों पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए| नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग भी कि जाती है| जब तक मूसली उखाड़ न ली जाय तब तक नमी बनाए रखें|
सफेद मूसली के कंद की खुदाई
जबतक मूसली का छिलका कठोर न हो जाय तथा इसका सफेद रंग बदलकर गहरा भूरा न हो तब तक जमीन से नहीं निकालें| मूसली को निकालने का समय जनवरी के अंत से फरवरी तक है| खोदने के उपरांत इसे दो कार्यों – बीज रखना या छीलकर तथा सुखाकर बेचने हेतु तैयार किया जाता है|
बीज के रूप में रखने के लिए खोदने के 1 से 2 दिन तक कंदों को छाया में रहने दें ताकि अतिरिक्त नमी कम हो जाय, फिर कवकरोधी दवा (बाविस्टीन) से उपचारित कर रेत के गड्डों, कोल्ड एयर कुल्ड चैम्बर में रखें| सुखाकर बेचने के लिए फिंगर्स को अलग-अलग कर चाकू अथवा पीलर की सहायता से छिलका उतार कर धूप में 3 सर 4 दिन रखा जाता है| अच्छी प्रकार सूख जाने पर बैग में पैक कर बाजार में बेचते हैं|
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सफेद मूसली की फसल से पैदावार
साधारणतः बीज की तुलना में गीली मूसली 6 से 7 गुणा प्राप्त होती है| अतः प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल बीज से 60 से 70 क्विंटल गीली सफेद मूसली प्राप्त होगी| अच्छा यह होगा कि जो लम्बी और बड़ी ट्यूवर्स है| उन्हें छीलकर सुखा लिया जाय और पतली एवं छोटी ट्यूबर्स को बीज के रूप में प्रयोग किया जाय| इस प्रकार एक हैक्टेयर में 60 क्विंटल गीली मूसली में 10 क्विंटल बीज के लिए रखकर शेष 50 क्विंटल सुखा दें ताकि 80 प्रतिशत सूख कर 10 क्विंटल सूखी मूसली प्राप्त हो|
सूखी मूसली के प्रकार एवं बिक्री दर-
‘अ’ श्रेणी- सही प्लांटिंग मैटेरियल से अच्छी तरह उगाई गई मूसली जो लम्बी, मोटी, सफेद एवं कड़क हो उसका मूल्य 900 से 1200 रुपये प्रति किलोग्राम तक मिलता है|
‘ब’ श्रेणी- इस श्रेणी की मूसली ‘अ’ श्रेणी की मूसली से कम मूल्य की होती है|
‘स’ श्रेणी- इस श्रेणी की मूसली काफी छोटी, पतली तथा भूरे रंग की होती है, जो जंगलों से अपरिपक्व अवस्था में उखाड़ी जाती है| इसका मूल्य 200 से 300 रु. प्रति किलोग्राम मिलता है|
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