समेकित कृषि प्रणाली, भारत में कृषि योग्य भूमि के औसत आकार में निरंतर गिरावट आ रही है, जो एक खतरे का संकेत है| छोटे किसान खेती से होने वाले आय से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाने में असमर्थ हैं| आकड़ों के अनुसार भारत की आधी से ज्यादा जनसख्या निर्धन है, यह रिस्थति दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है, क्योंकि किसी ना किसी बर्ष मानसून की अनिश्चितता रहती हैं|
वहीं दूसरी तरफ जनसंख्या वृद्धि की वजह से प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि में गिरावट आ रही हैं, साथ ही उर्वरक, जलकर्षण और विद्युत के दरों में वृद्धि ने कृषि पर होने वाले खर्च में वृद्धि की है| भूमि के क्षेत्रफल में वृद्धि की संभावना नगण्य है|
जबकि विभिन्न कृषि संस्थाओं को समेकित कर क्षेत्रफल में वृद्धि की जा सकती हैं| इसी कारण कृषकों के सुनहरे भविष्य और आय में वृद्धि के फलस्वरूप उनका आर्थिक स्तर भी ऊँचा उठेगा|
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समेकित कृषि प्रणाली क्या है?
1. जब एक दूसरे के पूरक एवं पारस्परिक लाभों के संयोग को अपनाकर कई तरीके की कृषि उपायों का उत्पादन किया जाता है, तो इसे समेकित कृषि प्रणाली का नाम दिया जाता है|
2. मछली के तालाबों के साथ सुअर पालन और कुक्कुट पालन का संयोग मछली उत्पादन हेतु एक उल्लेखनीय पोशक संसाधन निर्मित करता है, जो मछली के आहार तथा तालाब को उर्वर बनाने की 50 प्रतिशत से अधिक लागत को कम करता है|
3. एक स्थानीय और प्रणाली-जनित व्यर्थों के संयोग पर टिकी रह सकती है, जिसमें कुक्कुट बीट, पशु गोबर व सुअरों के बचे हुए आहार तथा पोषक-समृद्ध मछली तालाब जल, लागत मूल्यों में कमी लाते हुए वापस सीधे खेत में पहुँचा दिया जाता है|
4. मछली पालन, कृषि, कुक्कुट पालन, सुअर पालन, खरगोश पालन, बकरी पालन, सिंचाई साधन इत्यादि उपयुक्त कृषि उपांगों के संयोग को एक दूसरे के साथ समेकित किया जा सकता है, जो कि उनकी स्थानीय उपलब्धता, संभावना और लोगों की आवश्यकता पर निर्भर करता है|
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प्रणाली के मुख्य घटक
छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए मछली पालन, मुर्गी पालन, सुअर पालन, रेशम पालन, दुग्ध व्यवसाय, उद्यानिकी, जैविक खाद और कृषि को मिलाकर एक उपयुक्त समेकित कृषि प्रणाली विकसित की गई, जिसकी विशेषतायें नीचे दी गयी हैं| जो इस प्रकार है, जैसे-
मत्स्य पालन
कृषि योग्य भूमि का निरंतर घटता क्षेत्रफल किसानों के फसल उत्पादन पर सीधा प्रभाव डाल रहा है, जो उन्हें अन्य विकल्पों के तरफ जाने के लिए प्रेरित कर रहा है| जागरूक किसान फसल के साथ-साथ मत्स्य और पशु पालन अपनाकर अपने आय में वृद्धि कर रहा है|
इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है, कि पशु अपशिष्ट को पुनरांतरण करके फसलों के लिए जैव खाद और मछलियों के लिए भोजन प्राप्त होता है, जिससे कृषि में होने वाले खर्च को कम किया जा सकता है| मत्स्य पालन के लिए किसान के पास तालाब, जलाशय या अन्य जल स्त्रोत होने चाहिए, जिसमें वह मत्स्य पालन कर सके|
कृषक संस्थाओं को मत्स्य पालन के लिए केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा 40 से 90 प्रतिशत की सब्सिडी दी जा रही हैं, जिसमें वे मत्स्य पालन में वृद्धि करके ग्रामीण युवाओं को रोजगार का अवसर प्रदार कर सकते हैं|
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दुग्ध व्यवसाय
दुग्ध व्यवसाय किसी भी देश के कृषि अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण आधार स्तंभ हैं और सकल कृषि उत्पाद में इसका द्वितीय योगदान है| विगत वर्षों में ऑपरेशन फ्लड या श्वेत क्रांति के फलस्वरूप दूध उत्पादन में अद्वितीय वृद्धि हुई है|
श्वेत क्रांति के द्वारा अनुसंधान संस्थाओं, विस्तार संस्थाओं, उत्पादन और विपणन नेटवर्क, बैंकिंग संस्थाओं द्वारा उचित ऋण की सुविधा एवं दुग्ध उत्पादकों द्वारा नवीन तकनीकों के प्रयोग से भारत विश्व का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक राष्ट्र बन गया है|
दुग्ध व्यवसाय (फार्मिंग) ने ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक रोजगार उत्पन्न किया है और ग्रामीण समुदाय के कमजोर वर्गों को भी रोजगार के सुअवसर प्रदान किए हैं, इस व्यवसाय ने कृषकों के आय में अतिरिक्त रूप से वृद्धि की है|
मुर्गीपालन
यह एक उभरता हुआ व्यवसाय है, जो किसानों को रोजगार पोषण और अच्छी आमदनी प्रदान करता है| जिससे गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। भारत का 80 से 85 प्रतिशत मुर्गीपालन छोटे किसानों द्वारा किया जाता हैं|
रेशम पालन
भारत का चीन के बाद कच्चे रेशम के उत्पादन में द्वितीय स्थान है, जबकि कच्चे रेशम और रेशमी वस्त्रों के सर्वाधिक उपभोक्ता भारत में ही हैं| यह व्यवसाय आमतौर पर किसानो, संस्थाओं और बुनकरों के लिए पसंद का व्यवसाय हैं| क्योंकि इसमें कम निर्देश पर बहुत अच्छी आमदनी होती है और मलबरी के उद्यान का रख-रखाव भी सस्ता है। पूरे वर्ष के लिए ट्यूबवेल सिंचित भूमि में उपयोगी है, जबकि वृक्षारोपण के लिए शुष्क भूमि उपयोगी है|
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बागवानी या उद्यानिकी
भारत विश्व में फल तथा सब्जी के उत्पादन में द्वितीय है| फल, सब्जी, कंद और प्रकंद फसल, सजावटी पौधे, औषधीय पौधे, मसाले आदि लगाकर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं|
वर्मी कम्पोस्ट
कम्पोस्ट मिट्टी के भौतिक और रासायनिक गुणों में वृद्धि के लिए अतिआवश्यक तत्व है| बायोमास जो किसानों को पुआल, पत्ती और तने के रूप में प्राप्त होता है, का उपयोग पशुओं के चारा के रूप में और घरेलु ईंधन में होता है| पशुओं का गोबर भी एक अन्य बायोमास का उदाहरण है, जो कि कुछ दिनों बाद जीवाणु अपघटन के फलस्वरूप जैविक खाद में परिवर्तित हो जाता है| गोबर का दूसरा उपयोग बायो गैस संयंत्रों द्वारा गाँवों में सस्ती बिजली उत्पादन उपलबध भी कराना हैं|
विशेष- किसान भाइयों को बता दे की, उपरोक्त लगभग समेकित गैर रोजगार व्यवसायों पर केंद्र और राज्य सरकारें रोजगार बढ़ाने के लिए अनुदान भी देती है|
समेकित कृषि तंत्र के लाभ
1. खाद्य उत्पादन में वृद्धि एवं जनसंख्या का भरण-पोषण|
2. कार्बनिक अपशिष्ट रूपांतरण के द्वारा मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखना|
3. समेकित कृषि व्यवस्था से मिट्टी क्षरण को भी रोका जा सकता हैं, क्योंकि यह व्यवस्था कृषिवानिकी को बढ़ावा देती है|
उपरोक्त समेकित गैर रोजगार के साधनों से ग्रामीण जनता के आय में वृद्धि होती हैं, जिसके फलस्वरूप उनका जीवन स्तर ऊँचा उठता है|
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