समेकित पोषक तत्व (आईएनएम) प्रबंधन, आज प्रत्येक किसान यह अपेक्षा करता है, कि उसको खेती के सम्पूर्ण क्षेत्र में अच्छी गुणवत्ता वाली अधिक से अधिक पैदावार प्राप्त हो, प्रारम्भ में जब रासायनिक उर्वरक उपलब्ध नहीं थे, खेती में जैविक खादों का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता था| जिससे फसल उत्पादन अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँच पाता था, परन्तु 60 के दशक में जब हरित क्रांति का उद्भव हुआ, उर्वरकों का प्रयोग धीरे-धीरे बढ़ता गया|
जिससे उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई, प्रारम्भ में प्रमुख पोषक तत्वों में केवल नाइट्रोजन उर्वरकों का प्रयोग हुआ लेकिन धीरे-धीरे फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों के महत्व को समझते हए इनका प्रयोग भी होने लगा, परन्तु अन्य आवश्यक पोषक तत्वों जैसे-
मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक, आयरन, कॉपर, मैंग्नीज, मालिब्डेनम, बोरान और क्लोरीन की मिट्टी में कमी होती रही फलस्वरूप इन तत्वों की पौधों को आवश्यकतानुसार उपलब्धता न होने से अधिकांश क्षेत्रों में उत्पादन में ठहराव आ गया एवं उत्पादन में कमी भी देखी गयी| मिटटी के जीवांश में हो रहें लगातार हास से भूमि में भौतिक, रासायनिक और जैविक क्रियाओं में इस प्रकार परिवर्तन हुआ कि देश की बढ़ती आबादी के सापेक्ष खाद्यान्नोत्पादन पर प्रश्न चिन्ह लग गया|
हाल के अनुसंधान में पाया गया है, कि समेकित पोषक तत्व गोबर की खाद या हरी खाद या फसल अवशेषों के भूसे द्वारा कुल पोषक तत्वों के 50 से 75 प्रतिशत आपूर्ति से फसल प्रणाली की उपज में वृद्धि होती है एवं उर्वरता बनी रहती है|
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समेकित पोषक तत्व प्रबंधन क्यों?
1. उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए|
2. उत्पादकता में निरंतरता बनाए रखने के लिए|
3. उत्पाद को लाभदायक बनाए रखने के लिए|
4. समेकित पोषक तत्व वातावरण को बचाए रखने के लिए सहायक है|
5. रोगों या कुपोषण से बचाव के लिए|
समेकित पोषक तत्व प्रबंधन क्या है?
समेकित पोषक तत्वों के सभी स्रोत (रासायनिक उर्वरक, जैविक और जीवाणु खाद) का संतुलित, समुचित तथा समयानुकुल प्रयोग कर सब्जियों, फूल-फल व औषधिय फसलों से उच्च उत्पादकता निरंतर पाने की प्रबंधन तकनीक जिससे मिटटी और पर्यावरण को हानि न पहुँचे “समेकित पोषक तत्व प्रबंधन” कहलाता है|
समेकित पोषक तत्व प्रबन्धन से लाभ
1. अधिकतम पैदावार प्राप्त करना और पोषक तत्वों को बर्बादी से बचाना|
2. विषैलापन तथा प्रतिक्रियाओं से बचाना, किसी एक तत्व की अधिकता भी विषैलापन पैदा करती है|
3. मिटटी की उत्पादकता तथा स्वास्थ्य बनाये रखना|
4. गुणात्मक उत्पादन व वातावरण की विपरीत परिस्थितियों से बचाव|
5. कीड़े मकोड़ों के प्रभाव को प्राकृतिक तौर पर कम करना और लाभ या लागत अनुपात में वृद्धि|
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समेकित पोषक तत्व प्रबन्धन के लिए सुझाव
1. मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों और जैविक खादों का प्रयोग करें|
2. दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर का प्रयोग अवश्य करें|
3. धान एवं गेहूं के फसल-चक्र में ढेंचे की हरी खाद का प्रयोग करें एवं फसल चक्र में परिवर्तन करें|
4. आवश्यकतानुसार उपलब्धता के आधार गोबर और कूड़ा करकूट का प्रयोग कर कम्पोस्ट बनाई जाये|
5. खेत में फसलावशिष्ट जैविक पदार्थों को मिट्टी में मिला दिया जाए|
6. विभिन्न प्रकार के जैव उर्वरकों एवं नाइट्रोजन संस्लेषी फास्फेट को घुलनशील बनाने वाले बैक्टिरियल अल्गल एवं फंगल बायोफर्टिलाइजर का प्रयोग करें|
7. कार्बोनिक जीवांश और अकार्बोनिक उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें|
समेकित पोषक तत्व का प्रबंधन के घटक
उर्वरक- नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं पोषक तत्व मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक, आयरन, कॉपर, मैंग्नीज, मालिब्डेनम, बोरान, क्लोरीन एवं अन्य|
जैविक खाद- कम्पोस्ट, एफ.वाई.एम., केचुआ खाद, हरी खादें, फसलों के अवशिष्ट, जानवरों के न खाने योग्य खल्ली (रड़ी, महुआ, करंज, नीम, अरंडी इत्यादि), अजोला और पौधों के अवशिष्ट आदि प्रमुख है|
जीवाणु खाद- राजोबियम (दलहनी फसलों के लिए), नील हरित शैवाल, एजोस्पिरीलम, एजोटोबेक्टर एवं फॉसफेट घोलक जीवाणु आदि|
कृषि उद्योगों अवशिष्ट- कृषि आधारित उद्योगों के अवशिष्ट गन्ने और कागज से निकला चूना अवशिष्ट प्रमुख है|
खनन और औद्योगिक अवशेष- चूना पत्थर, डोलोमाईट, बैसीक स्लैग, जिप्सम, फॉसफोजिप्सम, पाईराईट आदि|
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जैविक खाद और फसलों के अवशेषों का महत्व
समेकित पोषक तत्व हेतु जैविक खाद और फसलों के अवशेष फसलों को मुख्य, द्वितियक तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों को प्रदान करते हैं, फसलों में इनका महत्व इस प्रकार हैं, जैसे-
1. समेकित पोषक तत्वों के भंडारीकरण में सहायक
2. मिट्टी में जीवांश की मात्रा में वृद्धि करना
3. मिट्टी में पोषक तत्वों के ह्रास को रोकना
4. मिट्टी के भौतिक गुणों जैसे- जलधारण क्षमता, ऑक्सीजन का आवागमन, मिट्टी के भारीपन में कमी करना, मिट्टी को गर्म रखना आदि के सुधार में समेकित पोषक तत्व प्रणाली सहायक|
5. मिट्टी के रासायनिक गुणों के सुधार में समेकित पोषक सहायक|
6. मिट्टी के जीवाणु जनित गुणों का विकास करना|
7. समेकित पोषक तत्व प्रणाली द्वारा उर्वरकों की दक्षता में वृद्धि करना प्रमुख है|
जैविक खाद का उपयोग कैसे करें
किसान भाई जैविक खाद के महत्व को पूर्ण रूप से जानते हैं, लेकिन व्यावसायिक लाभ के लिए उन्हें बेहतर तकनीकों को बतलाने की आवश्यकता है-
1. इनके साथ फसलों के अवशिष्ट, रसोईघर के अवशिष्ट के साथ मिलाकर, केंचुआ खाद बनाकर (रॉक फास्फेट, सूक्ष्म पोषक तत्व इत्यादि को मिलाकर) इनको अधिक गुणकारी बनाएँ|
2. समेकित पोषक तत्व के तहत रासायनिक खाद के साथ इसका उपयोग करें|
3. वैज्ञानिक विधि से इनका संरक्षण करें|
4. अधिक लाभ देने वाले फसलों में इनका उपयोग करें|
5. इनका प्रयोग बायोगैस बनाकर करें|
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अलग-अलग फसलों हेतु पोषक तत्व
फसल- फूल गोभी, पत्ता गोभी, ब्रोकोलाई, नॉल-खाल आदि|
पोषक तत्व- पोटाशियम, बोरन, कैल्शियम आदि मुख्य है|
फसल- प्याज और लहसून हेतु|
पोषक तत्व- पोटाशियम, सल्फर और मैगनेशियम प्रमुख है|
फसल- मूली, गाजर, बीट और टरनीप आदि|
पोषक तत्व- पोटाशियम, सल्फर और मैगनेशियन आदि मुख्य है|
फसल- चाइनिज पत्तागोभी, पालक और गंधारी साग आदि|
पोषक तत्व- नेत्रजन और फॉस्फोरस मुख्य है|
फसल- मटर, बीन वर्गीय फसले|
पोषक तत्व- कैल्शियम, फॉस्फोरस और सल्फर आदि|
फसल- तरबूज, करेला, ककड़ी, कद्दू कोहड़ा, झींगी और गोंगरा आदि|
पोषक तत्व- नेत्रजन, फॉस्फोरस और पोटाश आदि|
फसल- भिन्डी
पोषक तत्व- पोटाशियम और फॉस्फोरस प्रमुख है|
फसल- आलू, ओल और शकरकंद इत्यादि|
पोषक तत्व- पोटाशियम, मैगनिशियम और सल्फर आदि प्रमुख है|
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आम्लिक मिट्टियों में चुना का उपयोग
सभी फसलें उदासीन प्रतिक्रिया वाली मिट्टियों में ही अच्छी होती है, इसलिए समेकित पोषक तत्व प्रतिक्रिया के अनुसार 2 से 4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्रति फसल उर्वरक के लिए, पंक्तियों या पौधों के चारों ओर डालकर फसलों की अच्छी पैदावार प्राप की जा सकती है|
फलदार वृक्षों को लगाने के लिए पूरे गड्ढे की मिट्टी को उदासीन करना चाहिए, चूने के रूप में चूना पत्थर का चूरा, बाजारू चूना, डोलोमाईट या बेसिक स्लैग का प्रयोग किया जा सकता है| जिन फसलों में मैग्नशियम की अधिक आवश्यकता पड़ती है, वहाँ डोलोमाईट का उपयोग सर्वोत्तम होगा|
जैविक खाद का प्रयोग
सभी उद्यान वाली फसलों में जैविक खाद का अत्यन्त ही महत्व है| उद्यान वाली फसलों में यह आवश्यक है, कि मिट्टी की जलधारण क्षमता अच्छी रहे साथ ही साथ जड़ का फैलाव और हवा का आवागमन अवरूद्ध नहीं हो| इसलिए सभी बागवानी फसलों में 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर जैविक खाद की समेकित पोषक तत्व प्रणाली के तहत अनुशंसा की जाती है|
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जीवाणु खाद का प्रयोग
जब इतने मात्रा में जैविक खाद और रासायनिक का प्रयोग इन फसलों में किया जाता है, तो यह आवश्यक जान पड़ता है, कि इनमें उपलब्ध पोषक तत्वों की दक्षता बढ़ाई जाये ताकि रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम किया जा सके| राईजोबियम कल्चर का उपयोग सभी उद्यान फसलों जिनके जड़ों में गाँठे बनती है, किया जाता है| एजोटोबैक्टर और फॉस्फेट घोलक कल्चर का उपयोग मिट्टी में नेत्रजन बढ़ाने तथा मिट्टी में विद्यमान या उर्वरक के रूप में डाले गए फॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ाने में सहायक होती है|
वैज्ञानिकों के द्वारा किये गए शोध के आधार पर विभिन्न फसलों तथा फसल-चक्रों के लिए निम्नांकित पोषक तत्वों के उपयोग की सलाह दी गई है, जैसे-
फसल-चक्र/क्षेत्र | वर्तमान में पोषक तत्व का उपयोग | पोषक तत्व उपयोग की सलाह | हस्तक्षेप |
वर्षाश्रित ऊपरी भूमि- धान/रागी-परती | एफ वाई एम- 2 से 3 टन/हे. + यूरिया | एन पी के- 40:20:20 कि. हे. + कार्बनिक | फास्फोरस और पोटाश |
मकई-राहर/धान – राहड़, सोयाबीन/मूंगफली | यूरिया/ डी ए पी/ एफ वाई एम – उपलब्धता के आधार पर (25 से 50 प्रतिशत अनुशंसित मात्रा) | एन पी के- 80:60:40 कि./हे. + राईजोबियम कल्चर + चूना | फास्फोरस, पोटाश और चूना |
मध्यम भूमि- धान-चना, धान-मटर मकई-गेहूं, मुंगफली-गेहूँ, सोयाबीन-गेहूं | यूरिया/डी ए पी/एफ वाई. एम- उपलब्धता के आधार पर | एन पी के की अनुशंसित मात्रा + राईजोबियम कल्चर + चूना + कार्बनिक | फास्फोरस, पोटाश औरएवं राईजोबियम कल्चर |
धान-सब्जी/ सरसों | कार्बनिक खाद + डी ए पी | पोषक तत्व + चूना (मृदा जांच आधारित) + बोवाई के समय कार्बनिक | पोटाशियम, बोरोन, सल्फर और चूना (मृदा जांच आधारित) |
सब्जी खेती क्षेत्र | कार्बनिक खाद + डी ए पी | पोषक तत्व + चूना + बोरोन (मृदा जांच आधारित) + कार्बनिक | पोटाशियम, बोरोन और सल्फर |
निचली भूमि- धान-गेहूँ, धान-सब्जी, धान-सरसों | यूरिया/ डी ए पी/ कार्बनिक खाद | पोषक तत्व (मृदा जांच पर आधारित) | पोटाशियम और सल्फर (मृदा जांच आधारित) |
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समेकित पोषक हेतु उर्वरकों का प्रयोग
नाइट्रोजन
1. अम्लीक मिट्टियों में अम्लियता बढ़ाने वाले उर्वरकों (अमोनियम सल्फेट, अमोनियम क्लोराईड इत्यादि) का प्रयोग न करें|
2. एक बार में नाइट्रोजनधारी उर्वरक की पुरी मात्रा न डालें|
3. आवश्यकतानुसार 3 से 4 बार भुरकाव करें|
फॉस्फोरस
1. अधिक अवधि वाले फलों और फसलों में उपलब्ध होने पर रॉकफॉस्फेट का ही उपयोग करें|
2. जल में विलयनशील उर्वरक (सिंगलसुपर फॉस्फेट, ट्रीपल सुपर फॉस्फेट आदि) का उपयोग बीज बोने के लिए खोले गए नालियों में करें|
3. दानेदार फॉस्फेट उर्वरक का प्रयोग ज्यादा कारगर होता है|
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पोटाश
1. पोटाश उर्वरक का उपयोग अवश्य करें|
2. रोग व्याधि से लड़ने की क्षमता में वृद्धि होती है|
3. फसलों की गुणवत्ता (चमक, रखरखाव की अवधि) में वृद्धि होती है|
गंधक
1. भारत की ऊपरी मिट्टीयों में गंधक की काफी कमी पाई गई है|
2. तिलहनी और दलहनी पौधों में गंधक का विशेष महत्व है|
3. दलहनी और तिलहनी फसलों में क्रमशः 20 से 30 तथा 40 से 60 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टर की दर से उपयोग करें|
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सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग
अम्लीय मिट्टी में प्रायः बोरोन एवं मोलिब्डीनम की उपलब्धता पौधों के लिए कम होती है| इस प्रकार के मिट्टी में इनकी कमी को दूर करने के लिए 1.0 से 1.5 किलोग्राम मोलिब्डेनम (अमोनियम या सोडियम मोलिब्डेनम) का प्रयोग प्रति हेक्टर की दर से किया जाता है| यदि अमोनियम मोलिब्डेट 0.01 से 0.50 प्रतिशत घोल का छिड़काव पौधों पर किया जाये तो इसकी कमी दूर हो सकती है|
बोरान की कमी दूर करने के लिए 1.5 किलोग्राम बोरान प्रति हेक्टर (15 किलोग्राम बोरेक्स) सब्जी उगाने वाले क्षेत्रों में डालना चाहिए| यदि 0.1 से 0.2 प्रतिशत बोरेक्स या बोरीक एसीड का घोल का छिड़काव पौधों पर किया जाय तो बोरान की कमी दूर हो सकती है|
मिट्टी की उर्वरता निरंतर बनाये रखने के लिए पोषक तत्वों के विभिन्न स्रोतों जैसे- उर्वरक, जैविक खाद, जीवाणु खाद और अम्लीय मिट्टी के सुधार हेतु चूना का समन्वित उपयोग एवं मिट्टी जाँच के आधार पर संतुलित मात्रा में प्रयोग से फसल का उत्पादन और उत्पादकता में निरंतरता बनाकर ही खाद्यान्न उत्पादन तथा कुपोषण की समस्या से निदान पाया जा सकता है|
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