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अनार की खेती कैसे करें, जानिए उपयुक्त जलवायु, किस्में, रोग रोकथाम, पैदावार

Author by Bhupender 3 Comments

अनार की खेती

अनार उष्णकटिबंधीय एवं उप-उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों की एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक फल वाली फसल है| इसका उत्पति स्थान ईरान है| अनार पौष्टिक गुणों से परिपूर्ण, स्वादिष्ट, रसीला एवं मीठा फल है| जिसे देश के शुष्क वातावरण वाले क्षेत्रों में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है| हमारे देश में इसकी खेती मुख्य रुप से महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू एवं उत्तरप्रदेश राज्यों में की जाती है|

निर्यात की दृष्टि से भी यह फल बहुत महत्वपूर्ण है, खनिज एवं विटामिन- सी की प्रचुर मात्रा होने से इसके फल रोगियों जैसे हृदय रोगी, कैंसर, शुगर आदि के लिए बहुत ही उपयुक्त माने गये हैं| अनार के प्रति 100 ग्राम फल में 6 ग्राम प्रोटीन, 0.1 प्रतिशत खनिज, 5.1 ग्राम रेशा, 14.5 मिलीग्राम कैल्शियम, 70 मिलीग्राम फॉस्फोरस एवं 0.3 ग्राम लौहा होता है|

इसके महत्व को समझते हुए कृषकों को इसकी बागवानी उन्नत किस्मों के साथ वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए, ताकि इसकी फसल से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सके| इस लेख में किसान बन्धुओं के लिए अनार की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है|

उपयुक्त जलवायु

यह शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में उगाये जाने वाला एक महत्वपूर्ण फल है| इसकी खेती को मुख्यतया तापमान, प्रकाश, आर्द्रता, वर्षा इत्यादि कारक प्रभावित करते है| अनार का पौधा बहुत कम तापमान से लेकर अत्यधिक तापमान (48 डिग्री सेल्शियस) पर भी अपने आप को जीवित रख लेता है| परन्तु अच्छी बढवार एवं उत्पादन के लिये 15 से 40 डिग्री सेल्शियस तापमान उपयुक्त पाया गया है, साथ ही ऐसे क्षेत्र जहा वार्षिक वर्षा का स्तर 500 से 800 मिलीमीटर तक रहता है, सर्वोतम होता है|

फलों के विकास और पकने के समय गर्म एवं शुष्क जलवायु अच्छी मानी जाती है| लम्बे समय तक उच्च तापमान रहने से फलों में मिठास बढ़ जाती है| जबकि आर्द्र जलवायु से फलों की गुणवत्ता प्रभावित होती है तथा फफूंद जनित रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है|

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भूमि का चुनाव

अनार की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में सफलतापूर्वक की जा सकती है, परन्तु इसके सफल उत्पादन के लिए उचित जल निकास वाली, बलुई-दोमट मिटटी जो कि जीवांश पदार्थों से प्रचुर हो उत्तम मानी गयी है| मृदा का पी एच मान 6.5 से 7.5 के मध्य अच्छा होता है, परन्तु 8.5 पी एच मान तक वाली मृदाओं में भी इसका उत्पादन लिया जा सकता है|

उन्नत किस्में

किस्मों का चयन करते समय सदैव बहुत सावधानी रखे क्योकिं किस्मों का प्रदर्शन, क्षेत्र की जलवायु, मौसम विशेष, मिटटी की दशा इत्यादि पर निर्भर करता है| क्षेत्र विशेष के लिये किस्म का चुनाव करते समय उसकी उत्पादन क्षमता, पकाव की अवधि, बाजार मांग, भण्डारण क्षमता, कीट एवं बीमारियों से प्रतिरोधिता इत्यादि बातो को ध्यान में रखे| पौध रोपण हेतु नये पौधे खरीदते समय यह भी ध्यान रखे कि पौधा उसी किस्म का तो है, जिसकी जरूरत है तथा यह भी सुनिश्चित कर ले कि पौधा स्वस्थ और रोग मुक्त है|

हमारे देश में उगायी जाने जाने वाली कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार है, जैसे- गणेश, भगवा, मृदुला, ज्योति, अरक्ता, रूबी, जालौर सीडलैस और जोधपुर रेड आदि है| जो की विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाई जाती है| अनार की किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- यह भी पढ़ें- अनार की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

प्रवर्धन तकनीक

पौध रोपण सामग्री फलों के उत्पादन, उत्पादकता एवं गुणवत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है| अनार का प्रवर्धन बीज, तना कलम एवं गुटी विधि द्वारा आसानी से किया जा सकता है| परन्तु बीज द्वारा उगाये गये पौधे एक समान नही होते इसलिए प्रवर्धन में इस विधि का उपयोग कम होता है| सामान्यतया नये पौधे तैयार करने के लिये वानस्पतिक विधियां (कलम एवं एयर लेयरिंग) सर्वोत्तम मानी गयी है| इनके द्वारा तैयार पौधे गुणों में मातृ वृक्ष के समान होते है|

तना कलम विधि- नये पौधे तैयार करने के लिये यह एक आसान विधि है| इस के लिए पेन्सिल जितनी मोटाई वाली शाखा जो कि लगभग 9 से 12 माह पुरानी हो का चयन कर ले परन्तु यह ध्यान रखे की यह बगल वाली शाखा ना हो, जिनमें फूल एवं फल बनते है| कलम की लम्बाई 20 से 25 सेंटीमीटर की रखे| तैयार कलमों को रोपाई से पूर्व कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल में लगभग 5 मिनट तक गुनगुने पानी के घोल में डुबोकर रखे|

जिससे इन पर उपस्थित कीट एवं बीमारियों नष्ट हो जाये| इसके पश्चात् इन कलमों को इन्डोल ब्यूटाइरिक एसिड के 2 से 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में 2 से 3 मिनट तक डुबोकर रखे| उपचारित कलमों को बालू या कोकोपिट के माध्यम में तिरछी रोंप दें| तना कलम विधि के लिये बारिश वाला समय अच्छा होता है|

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एयर लेयरिंग- इसे गुटी विधि के नाम से भी जानते हैं| गुटी तैयार करने के लिए पेन्सिल मोटाई की शाखा (10 से 15 सेंटीमीटर) जोकि लगभग एक वर्ष पुरानी हो का चयन कर ले| चयनित शाखा से छल्ले के आकार की 2.5 से 3 सेंटीमीटर लंबाई की छाल निकाल ली जाती है| छल्ले के ऊपरी सिरे पर सेराडेक्स पाउडर या इन्डोल ब्यूटारिक एसिड (आई बी ए) का लेप लगाकर छल्ले को नम मॉस घास से ढक कर ऊपर से लगभग 400 गेज की पॉलीथीन का 15 से 20 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी से 2 से 3 बार लपेटकर सुतली से दोनों सिरों को कस कर बांध दिया जाता हैं|

मॉस घास पानी को आसानी से अवशोषित कर लेती है| लगभग 2 महीने बाद जब बाहर से पॉलीथीन में जड़े दिखाई देती है, तब इस शाखा को मात्र वृक्ष से अलग कर लेना चाहिए| अनार के प्रवर्धन की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अनार का प्रवर्धन कैसे करें, जानिए आधुनिक एवं व्यावसायिक तकनीक

रेखांकन एवं पौध रोपण

पोधों का रोपण हमेशा ऐसी विधी से किया जाना चाहिए, जिससे ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके| सही विधि के चयन से पौधो की देखभाल में कम खर्चे के साथ ही बाग में मौजूद संसाधनो का भी ठीक तरह से उपयोग किया जा सकता है| बाग लगाने के लिये वर्गाकार विधि सबसे आसान व सुगम है, इसमें सभी प्रकार के कृषि कार्य आसानी से किये जा सकते है| रेखांकन करने के पश्चात् खूटी वाले स्थानो पर गड्डों की खुदाई का कार्य करे|

अनार के लिए गड्डों का आकार 0.75 x 0.75 x 0.75 मीटर रखे एवं दो गड्डों के बीच की की दूरी 5 x 5 मीटर (400 पौधे प्रति हेक्टेयर) या 4 x 4 (625 पौधे प्रति हेक्टेयर) मीटर रखे| गड्डे खोदते समय ऊपर की आधी मिट्टी एक तरफ एवं शेष आधी मिट्टी को दूसरी तरफ डाल दे| खुदाई के पश्चात् गड्डों को 20 से 25 दिनों तक तेज धूप में खुला छोड़ दे, जिससे मिटटी में उपस्थित कीडे-मकौडे मर जायेगे|

गड्डा खोदते समय ऊपर की जो आधी मिट्टी अलग रखी थी, उसमें लगभग 20 से 25 किलोग्राम अच्छी तरह सड़ी गली गोबर की खाद, 1 से 1.5 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 500 ग्राम नीम की खली के साथ 50 से 100 ग्राम एम पी डस्ट 2 प्रतिशत चूर्ण या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण अच्छी तरह से मिला कर भर दे| गड्डो को जमीन की सतह से 15 से 20 सेंमी ऊपर तक भर दे एवं व्यवस्थित होने के लिये छोड़ दे, 2 से 3 बारिश के पश्चात् जब मिट्टी नीचे बैठ जाये उसके बाद रोपण का कार्य प्रारम्भ करे|

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रोपण का समय

खेत में पौधों की रोपाई का सही समय वहा की जलवायु पर निर्भर करता है| सामान्यतया रोपण बारिश के मौसम में किया जाता है| परन्तु यह देखा गया है कि बादलों के मौसम की तुलना में खुला मौसम रोपण के लिये अच्छा रहता है| शुष्क क्षेत्रों में जहा सिंचाई जल की ज्यादा कमी होती है, वहा इसका रोपण जुलाई से अगस्त में कर सकते है एवं जल की उपलब्धता होने पर यह कार्य फरवरी से मार्च में भी कर सकते है|

खाद एवं उर्वरक

यदि पौधों को सन्तुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक दिया जाये तो निश्चित रूप से पौधों की अच्छी बढ़वार एवं उत्पादन के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता वाले फल भी प्राप्त किये जा सकते है| अत: जहा तक हो सके हमेशा मृदा जांच के उपरान्त ही खाद एवं उर्वरको का उपयोग करना चाहिए| अनार में खाद एवं उर्वरको की मात्रा, मृदा की उर्वरता, पौधे की उम्र तथा फसल को दी गयी कार्बनिक खाद की मात्रा पर निर्भर करती है| सामान्यत: अनार के बागों में खाद एवं उर्वरक की मात्रा इस प्रकार दी जाती है, जैसे-

पौधे की आयु  गोबर खाद (किलोग्राम) नाइट्रोजन (ग्राम) फास्फोरस (ग्राम) पोटाश (ग्राम)
पहले वर्ष 10 100 50 100
दुसरे वर्ष 20 200 100 200
तीसरे वर्ष 30 300 150 300
चोथे वर्ष 40 400 200 400
पाचमें वर्ष व उसके बाद 50 500 250 500

अनार में खाद एवं उर्वरक साधारणतया फरवरी से अक्टूबर माह के मध्य डालते है| परन्तु खाद एवं उर्वरक देने का समय ली जाने वाली बहार पर निर्भर करता है| अम्बे बहार के लिए दिसम्बर से जनवरी, मृग बहार के लिए मई से जून तथा हस्त बहार के लिए सितम्बर से अक्टूबर माह में खाद एवं उर्वरक देनी चाहिए| खाद तथा उर्वरक को हमेशा पौधों के मुख्य तने से 20 से 30 सेंटीमीटर जगह छोड़कर ही डालना चाहिए| अनार में सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी बहुत महत्व है, अत: इनकी कमी के लक्षण दिखाई देने पर इनका भी छिड़काव करे|

सिंचाई प्रबंधन

अनार के पौधों में सूखा सहन करने की क्षमता होती है, इसीलिये यह अधिकतर शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रो में जहाँ पानी की सीमित मात्रा में उपलब्धता होती है, वहा उगाया जा सकता है| सिंचाई का सही समय कई कारको जैसे मृदा का प्रकार, मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा, मौसम इत्यादि पर निर्भर करता है|

प्रथम सिंचाई पौधो के रोपण के तुरन्त पश्चात् कर दे और उसके बाद गर्मियों में 7 से 10 दिन के अंतराल पर और सर्दियों में 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए| बरसात के मौसम में यदि बारिश नहीं होती है, तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए साथ ही जल भराव वाले क्षेत्रों में जल निकास की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए|

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अन्तवर्ती फसलें

रोपण के प्रारम्भिक वर्षों अर्थात पौधों पर फल शुरू होने से पहले कतारों में पड़ी खाली जगह पर कोई उपयुक्त फसल लेकर कुछ आमदनी ली जा सकती है| अन्तवर्ती फसल के रूप में सब्जियां अथवा दलहनी फसलें जैसे मटर, लोबिया, चना, मूग, उड़द इत्यादि उगाई जा सकती है| परन्तु यह जरूर ध्यान जरूर रखे कि अन्तवर्ती फसल के रूप में ऐसी सब्जियां ना उगावे जिनमें कीट एवं बिमारियों की समस्या ज्यादा आती हो| पौधो से उत्पादन प्रारम्भ होने के पश्चात् अन्य फसलें ना उगायें|

पौधो को दे सही आकार

अनार का पौधा झाड़ीनुमा होता है, इसलिए पौधों को उचित आकार व ढांचा देने के लिए काट-छांट व सधाई बहुत ही आवश्यक है| पौध रोपण के कुछ समय पश्चात् ही जमीन की सतह से कई शाखायें निकलने लग जाती है| परतु उनमें से 4 से 5 शाखाओं को ही रखना चाहिये तथा शेष शाखाओं को हटा देना चाहिये| कुछ स्थानो पर सधाई की एकल तना विधि भी प्रचलित है| परन्तु बहु-तना विधि शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रो के लिये, ज्यादा फायदेमंद है|

क्योकि किसी कारण वश एक तना मर भी जाये तो दूसरे तनो द्वारा उपज मिलती रहती है और साथ ही फल उत्पादन प्रारम्भ होने के पश्चात् जमीन की सतह से निकलने वाली नयी शाखाओं (कल्लों) को भी समय-समय पर निकालते रहना चाहियें, यह फलों के उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता को भी प्रभावित करते है| सुखी रोगग्रस्त शाखाओं के साथ जल प्ररोह शाखाओं को भी निकालते रहना चाहिये|

खरपतवार नियंत्रण

अनार की खेती में साल में 2 से 3 बार पौधे के गोलाकार भाग में खुदाई करें और फसल को खरपतवार मुक्त रखे| हाथ से खरपतवार निकालना मुश्किल हो तो खरपतवारनाशी पेराकवोट या पेन्डीमीथेलीन का उपयोग कर सकते है, लेकिन सावधानीपूर्वक पौधे को बचाके छिड़काव करें|

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बहार नियंत्रण

अनार में वर्ष में तीन बार फूल आते है, जिन्हे बहार कहते है| यदि एक ही पौधे से वर्ष में तीनो ही ऋतुओं (बंसत, वर्षा एवं गर्मी) के फल प्राप्त किये जाते है, तो कम उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता भी प्रभावित होती है| अतः यह वांछित होता कि एक पौधे से सिर्फ एक ही ऋतु में फल प्राप्त किये जाये इसके लिये शेष दो ऋतुओं के दरम्यान आये फूलों को पौधे से झाड़ दिया जाता है| जिसे बहार नियंत्रण करना कहा जाता है|

बहार लेने का समय बाजार की मांग एवं सिंचाई जल की उपलब्धता पर निर्भर करता है| परन्तु बेक्टेरियल ब्लाइट रोग से प्रभावित क्षेत्रों में हस्त बहार लेना ठीक रहता है| शुष्क क्षेत्र जैसे राजस्थान जैसे राज्यों के लिये मृग बहार लेना उपयुक्त रहता है| बहार नियंत्रण के लिए 1.5 से 2.0 महीने पहले सिंचाई बंद कर दी जाती है| जिससे पौधा अपनी पत्तियां गिराना प्रारम्भ कर देता है, साथ ही पौधे के तनाव के अन्तिम समय में ईथरेल (2 से 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करने से सभी पत्तिया गिर जाती है|

जब पौधा अपनी 80 से 85 प्रतिशत पत्तियां गिरा दे, तो पौधो की हल्की कटाई-छटाई भी कर दे उसके पश्चात् थालो की गुड़ाई करके हल्का पानी लगा देवे और सन्तुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक डालकर समय-समय पर सिचाई करते रहे| अनार में पुष्पन प्रारम्भ होने एवं फल तुड़ाई का समय इस प्रकार है, जैसे-

बहार का नाम (ऋतू) पुष्पन का समय  फल पकाव का समय 
अम्बे बहार (बसंत) जनवरी से फरवरी जुलाई से अगस्त
मृग बहार (वर्षा) जून से जुलाई दिसम्बर से जनवरी
हस्त बहार (गर्मी) सितम्बर से अक्टूबर मार्च से अप्रेल

कीट एवं नियंत्रण

अनार की तितली- प्रोढ़ तितली फूलों व छोटे फलों पर अण्डे देती है| इन अण्डों से इल्ली (केटरपिलर) निकलकर फलों के अन्दर प्रवेश करके बीजों को खा जाती है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिये प्रभावित फलों को नष्ट कर देना चाहिए| एण्डोसल्फॉन 0.05 प्रतिशत के घोल का 10 से 15 दिन के अन्तराल पर तीन बार छिड़काव करना चाहिए| फलों को कपड़े की थैलियों से ढककर रखना चाहिए|

तना छेदक- इस कीट की इल्लियां शाखाओं में छिद्र बना लेती है| प्रमुख रुप से तना या मुख्य शाखाएं प्रभावित होती है|

नियंत्रण- रोकथाम के लिये छिद्रों में तार डालकर इनको मारा जा सकता है| छिद्रों में पेट्रोल या मिट्टी के तेल में रुई भिगोकर भर देनी चाहिए तथा छिद्रों को मिट्टी से बंद कर देना चाहिए|

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छाल भक्षक- यह मुख्य शाखाओं व तने की छाल को नुकसान पहुंचाता है| जिससे पौधों की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है|

नियंत्रण- रोकथाम के लिये अधिक सघन उद्यान से अतिरिक्त पौधों को हटा देना चाहिए| प्रभावित क्षेत्र साफ करते रहना चाहिए तथा छोटे छिद्रों में केरोसिन या पट्रोल डालकर उन्हें रुई से बंद कर देना चाहिए|

दीमक- शुष्क क्षेत्रों में अनार के पौधों की जड़ों एवं तनों में दीमक का अधिक प्रकोप होता है| जिससे पौधे सूख जाते हैं|

नियंत्रण- रोकथाम के लिये पौध रोपण के समय ही प्रत्येक गड्ढे के भरावन मिश्रण में 50 ग्राम मिथाइल पैराथियान चूर्ण (5 प्रतिशत) मिलाना चाहिए| पौधों की प्रत्येक सिंचाई करते समय ‘क्लोरापायरिफास’ कीटनाशक दवा की 5 से 10 बूंद पानी के साथ थालों में देते रहना चाहिए|

माइट- माइट अनार की पत्तियों के ऊपरी और निचली सतह पर शिराओं के पास चिपक कर रस चूसते हैं| इससे ग्रसित पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती है और पूर्ण ग्रसित होने की दशा में पौधा पत्ती रहित होकर सूख जाता है|

नियंत्रण- माइट का प्रकोप होते ही पौधों पर एक्साइड दवा के 0.1 प्रतिशत घोल के दो छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए|

रस चूसक- मीलीबग, मोयला, थ्रिप्स आदि कीट भी अनार के पौधों के कोमल भागों का रस चूसते है| जिससे कलियां, फूल व छोटे प्रारम्भिक अवस्था में ही खराब होकर गिरने लगते हैं|

नियंत्रण- इनकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस या डायमेथोएट कीटनाशी का 0.05 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए|

रोग एवं रोकथाम

पत्ती व फल धब्बा रोग- इसका प्रकोप अधिकतर ‘मृग बहार’ की फसल में होता है| वर्षा ऋतु में अधिक नमी के कारण पत्तियों और फलों पर भूरे एवं गहरे काले धब्बे दिखाई देते है| जिससे रोगी पत्तियां गिर जाती है और फलों के बाजार मूल्य में गिरावट आ जाती है| फल सड़ने भी लगते हैं|

नियंत्रण- रोकथाम के लिये रोग ग्रसित फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए| बाग की समय-समय पर सफाई करते रहना चाहिए| कॉपर आक्सिक्लोराईड 4 ग्राम, मैन्कोजेब एवं जिनेब का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ घोल बना कर 15 से 20 दिन के अन्तराल पर तीन-चार छिड़काव करने चाहिए|

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पत्ती मोड़क (बरुथी)- इस रोग के कारण पत्तियां सिकुड़ कर गिर जाती है| जिससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर विपरित प्रभाव पड़ता है तथा पौधों की बढ़वार व फलन बुरी तरह प्रभावित होता है| यह रोग सितम्बर माह में अधिक फैलता है|

नियंत्रण- रोकथाम के लिये ओमाइट या इथियोल 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए तथा 15 दिन के अन्तराल पर दूसरा छिड़काव करें|

तेलीय धब्बा रोग- यह अनार का सबसे भयंकर रोग है| इसका प्रभाव पत्तियों, टहनियों व फलों पर होता है| शुरु में फलों पर भूरे रंग के तेलीय धब्बे बनते हैं| बाद में फल फटने लगते हैं तथा सड़ जाते हैं| रोग के प्रभाव से पूरा बगीचा नष्ट हो सकता है|

नियंत्रण- रोकथाम के लिये केप्टान 0.5 प्रतिशत या बैक्टीरीयानाशक 500 पी पी एम को छिड़काव करना चाहिए| अनार में कीट एवं रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अनार में कीट एवं रोग रोकथाम कैसे करें, जानिए आधुनिक तकनीक

अनार के विकार

फलफटन- इसका मुख्य कारण बोरोन तत्व की कमी व लम्बे समय तक बाग में सूखा रहने के बाद अचानक भारी सिंचाई करना या भारी वर्षा होना होता है| इसके अतिरिक्त तापमान में अत्यधिक परिवर्तन भी फल फटने का कारण होता है|

नियंत्रण- रोकथाम के लिये बोरेक्स का 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करें और नियमित रुप से सिंचाई करनी चाहिए| फल फटन रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए| जून माह में जिब्रोलिक अम्ल का 250 पी पी एम (250 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में) का छिड़काव करने से काफी हद तक इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है| अनार के फलों का फटना और रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अनार के फलों का फटना, जानिए कारण और रोकथाम के उपाय

फलों की तुड़ाई

अनार के फलों की समय पर तुडाई बहुत जरूरी है| फलों के पकने का समय किस्म एवं मौसम पर निर्भर करता है| अनार में किस्मों के अनुसार फूल आने से लेकर फल पकने में लगभग 130 से 180 दिन का समय लगता है| फलों का रंग जैसे ही हरे से हल्का पीला-लाल में बदलने लगे तो समझ लेना चाहिए कि फल पकने की स्थिति में हैं|

सामान्यत: मृदुला, जालौर सीडलेस, अर्काता किस्मों के फल 130 से 145 दिनों में तोड़ने के लायक हो जाते है| जबकि भगवा किस्म के फल 170 से 190 दिनों में तोड़ने के योग्य हो जाते है| पके फलों को दबाने पर उसमें से टुटने की आवाज आती है|

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पैदावार

अनार फलों की उपज उगायी जाने वाली किस्म, जलवायु, मृदा, पौधों की संख्या, फसल प्रबंधन इत्यादि पर निर्भर करती है| सामान्यत: अच्छे विकसित पौधे से 100 से 125 फल प्रति पौधे के हिसाब से प्राप्त हो जाते है| जिनका वजन 50 से 90 किलोग्राम तक हो जाता है|

फलों का श्रेणी करण

अनार के फलों के वजन, आकार एवं बाहरी रंग के आधार पर निम्नलिखित श्रेणियों में रखा जाता है, जैसे-

सुपर साईज- इस श्रेणी में चमकदार लाल रंग के बिना धब्बे वाले फल जिनका भार 750 ग्राम से अधिक हो आते हैं|

किंग साईज- इस श्रेणी में आर्कषक लाल रंग के बिना धब्बे वाले फल जिनका भार 500 से 750 ग्राम हो आते हैं|

क्वीन साईज- इस श्रेणी में चमकदार लाल रंग के बिना धब्बे वाले फल जिनका भार 400 से 500 ग्राम हो आते हैं|

प्रिंन्स साईज- पूर्ण पके हुए लाल रंग के 300 से 400 ग्राम के फल इस श्रेणी में आते हैं|

अन्य- शेष बचे हुए फल दो श्रेणीयों 12- ए एवं 12- बी के अंर्तगत आते हैं| 12- बी के अंर्तगत 250 से 300 ग्राम भार वाले फल जिनमें कुछ धब्बे हो जाते हैं|

भंड़ारण- फलों को शीत गृह में 5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 2 माह तक भण्डारित किया जा सकता है|

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Reader Interactions

Comments

  1. Mukesh Bhati says

    अप्रैल 15, 2019 at 10:31 अपराह्न

    सर अनार का पौधा पीला क्यू पड़ता है उसका क्या करना हो सकता है ओर उसको खाद वगेरा केसे दिया है अनार का ग्रोथ केसे बड़ाए ओर उसको कलम केसे की जाती है उसकी जानकारी दे उसके लिए जमीन केसी होनी चाहिए tat उसके पानी केसा होना चाहिए इनसे जुड़ी उपयुक्‍त जानकारी दे

    प्रतिक्रिया
  2. Sushil yadav says

    अगस्त 3, 2019 at 3:31 अपराह्न

    Sushil yadav : me anar ki kheti kran chahta gu aap hmari mdadt krege me up . Se hu

    प्रतिक्रिया
  3. Yogesh patidar says

    फ़रवरी 17, 2020 at 8:19 अपराह्न

    Hmare anar ka bagiche ko 6 year ka ho gya full ni aa rhe

    प्रतिक्रिया

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