
आंवले का प्रवर्धन पारंपरिक रूप से इसके पौधे बीज द्वारा या भेंट कलम बंधन द्वारा तैयार किए जाते है| बीज द्वारा आंवले का प्रवर्धन आसान और सस्ता होता है, परन्तु परंपरागित होने के कारण बीज द्वारा तैयार पौधे अधिक समय में फसल देते है और गुण, आकार में भी मातृ पौधों के समान नही पाये जाते हैं| आंवले के पौधे उपर की तरफ बढ़ने वाले होते हैं| यदि आप आंवले की बागवानी की सम्पूर्ण जानकारी जानना चाहते है, तो यहां पढ़ें- आंवला की खेती कैसे करें, जानिए उपयुक्त जलवायु, किस्में, रोग रोकथाम, पैदावार
इसलिए निचली सतह से बहुत कम शाखाएँ निकलती हैं, जिससे भेंट कलम बन्धन अधिक सफल नही है, हाल के वर्षों में आवलें के प्रवर्धन हेतु कई कायिक विधियों का मानकीकरण किया गया है| अब इसका सफल प्रवर्धन पैबन्दी चश्मा, विरूपित छल्ला विधि, विनियर कलम द्वारा सफलतापूर्वक किया जा सकता है| आंवले का प्रवर्धन चश्मा (पैच बडिंग) द्वारा जुलाई से अगस्त तक किया जाता है|
आंवले का प्रवर्धन हेतु जनवरी और फरवरी के महीने में पके हुए देशी किस्मों को एकत्र कर लेना चाहिए, फलों को धूप में सुखा लिया जाता है| पूरी तरह से सूखने के बाद फल अपने आप फट जाते हैं, तथा उनके अन्दर के बीज बाहर आ जाते हैं| यदि बीज से अपने आप फल से नहीं निकल रहे हों तो हल्का सा दबाव दिया जा सकता है| एक फल से प्रायः 6 बीज प्राप्त होते हैं, लगभग एक क्विंटल फल से एक किलोग्राम बीज प्राप्त होता है|
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बीज उगाना
बीजों को बोने से 12 घंटे पहले पानी में भिगो देना चाहिए, उपर तैरते हुए बीजों को अलग कर देना चाहिए तथा जो बीज पानी में डूबे हुए है, उनको निकालकर सुखा ले| पौधशाला की क्यारी 3 मीटर लम्बी एवं एक मीटर चौड़ी बनानी चाहिए| खुदाई के बीच इस प्रकार की एक क्यारी में 40 किलोग्राम गोबर की पुरानी महीन खाद व पत्ती की महीन खाद मिट्टी से मिला देनी चाहिए|
क्यारी को अंतिम रूप देते समय इसे भूमि के धरातल से 15 सेंटीमीटर उँचा रखना चाहिए, प्रत्येक क्यारी के चारों और 25 से 30 सेंटीमीटर चौड़ा स्थान कृषि क्रियाएं करने के लिए छोड़ देना चाहिए| आंवले के बीजों को 10 से15 सेंटीमीटर के फासले पर बनाई गई पंक्तियों में 3 से 4 सेंटीमीटर के फासले पर एक से आधा सेंटीमीटर की गहराई में बो देना चाहिए|
पंक्तियां क्यारी की चौड़ाई में बनानी चाहिए, बीजों की बोवाई मार्च से अप्रैल में अवश्य ही कर देनी चाहिए| इस बीच तेज धूप से बचाव के लिए सिर्की या घास फूस की हल्की परत द्वारा कोमल पौधों को छाया प्रदान करनी चाहिए|
चश्मा (पैच बडिंग) द्वारा
बोने के बाद बीज 2 से 3 हफ्ते में जम जाते हैं, पौधशाला की क्यारी में जब पौधे 8 से 10 सेंटीमीटर की ऊंचाई के हो जाएं, तब इन्हें पूर्व तैयार की गई क्यारियों में 30 x 20 सेंटीमीटर के फासले पर प्रतिरोपित कर देना चाहिए| आंवले का प्रवर्धन हेतु जहां इन पौधों (मूलंवृतों) पर कलिकायन करनी हो, मूलवृंत के समय 2 से 3 सेंटीमीटर लम्बाई और 0.5 सेंटीमीटर चौड़ाई के आयताकार रिक्त स्थान पर उसी माप के सायन की टहनी से पूर्व में निकाली गई आँखे (कली) के आयताकार पैबंद (पैच) साट (बाध) देना चाहिए| तत्पश्चात इस पैबंद को प्लास्टिक के फीते से सम्भाल के बाधना चाहिए तथा और हुई आँख खुली रहनी चाहिए|
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पैबन्दी कलिकायन की प्रक्रिया पैबंद बांधने के लिये प्लास्टिक के फीते प्रयोग किये जाने की दशा में कली का पैबंद जुड़ जाने के तुरंत बाद ही फीता खोल देना चाहिए, देर से खोलने पर मूलवृंत की वृद्धि के साथ साथ फीते मूलवृंत की छाल व गूदे में धंसते जाते हैं| इससे पौधे की सुचारू रूप से वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है|
कली का पैबंद मूलवृंत से लगभग दो सप्ताह में जुड़ जाता है| इसके बाद पैबंद के जोड़ से लगभग 3 सेंटीमीटर उपर से मूलवृत को सिकटियर से संभालकर काट देना चाहिए, तब ही पैबंद की कली में फुटाव आ जाता है, एवं उसमें वृद्धि होने लगती है| इस तरह पैच बडिंग द्वारा आंवले का एक कलमी पौधा तैयार हो जाते है|
आंवले का प्रवर्धन के लिए पालीथीन थैले, पाली टयूब्स या स्व स्थाने बाग स्थापन मूल रूप से सूखाग्रस्त क्षेत्र हेतु आदि विधाओं का भी मानकीकरण किया गया है| परन्तु उनके व्यापक प्रसार की आवश्यकता है| आंवले की शांकुर शाखों को भीगी हुई मास घास या अखबार के टुकड़ों में लपेट कर 5 से 7 दिनों तक परिवहन या भण्डारण किया जा सकता है|
इस प्रकार आंवले का प्रवर्धन चश्मा (पैच बडिंग) द्वारा आधुनिक और व्यावसायिक तकनीकी से किसान और बागवान बन्धु अपने विश्वास के पौधे तैयार कर सकते है, और पौधशाला के जरिए मुनाफा भी कमा सकते है|
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