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टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली क्या है, जानिए लाभ, देखभाल, प्रबंधन एवं सरकारी अनुदान

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टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली क्या है

टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली, कृषि के लिये जल एक बहुत महत्वपूर्ण निवेश है| खेतों व बाग-बगीचों में सीधे पानी लगाने यानि सतही सिंचाई विधि से बहुमूल्य पानी का 60 प्रतिशत भाग किसी न किसी कारण बर्बाद हो जाता है| इसलिए पानी की बर्बादी को रोकना अत्यंत आवश्यक है| भविष्य में जल की कमी की गम्भीरता को देखते हुए इस बहुमूल्य उत्पाद कारक के सही उपयोग की आवश्यकता है|

टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली क्या है

टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली एक नवीन पद्धति है, जिसके द्वारा किसान अपने बागों की बड़ी आसानी से सिंचाई कर सकते हैं| टपक पद्धति द्वारा पौधों को उनकी आवश्यकता अनुसार पानी को बूंद-बूंद के रूप में पौधों के जड़ क्षेत्र में उपलब्ध कराया जाता है|

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टपक (ड्रिप) प्रणाली के लाभ

1. टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली से पानी का केवल पौधों के जड़ों में ही वितरण, अतः पानी की निश्चित बचत, जिसके द्वारा अधिक क्षेत्र में खेती संभव है|

2. पानी देने के लिये मेढ़े और नालियाँ बनाने की आवश्यकता समाप्त, इसलिए श्रम के साथ-साथ पैसे की बचत भी होती है|

3. पोषक तत्वों, पानी और हवा का पौधों की जड़ों में समुचित सम्मिश्रण संभव, इसलिए पैदावार और पैदावार की गुणवत्ता में अविश्वसनीय वृद्धि होना|

4. केवल जड़ों को ही पानी देने से खरपतवार नियन्त्रण, इसलिए खरपतवार की समस्या समाप्त|

5. पौधों की जड़ों में ही खाद का एकसार वितरण, इसलिए रसायन की बचत|

6. लवणीय भूमि में खेती को संभव बनाना|

7. सिंचाई के लिए लवणीय जल को उपयोगी बनाना|

8. उपज समय से जल्दी प्राप्त होना|

9. इस पद्धति से यदि खेत समतल नहीं है, यानि की ऊबड़-खाबड़ है, तब भी पौधों की सिंचाई भली प्रकार से की जा सकती है|

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टपक सिंचाई प्रणाली

टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली बागों में पानी के मुख्य स्रोत से पौधों की जड़ों तक कुछ विभिन्न प्रकार, अकार और क्षमता वाले प्लास्टिक के पाइपों की सहायता से पूरे खेत या बाग में जाल सा बिछाकर कुछ अन्य उपकरण जैसे ड्रिपर या इमिटर, स्क्रीन फिल्टर, बालु छन्नक (सैन्ड फिल्टर), गेट वाल्व, वेन्चुरी इत्यादि को लगाकर बूंद-बूंद पानी उपलब्ध कराये जाने की पद्धति को ही टपक (ड्रिप) प्रणाली के नाम से जाना जाता है|

प्रणाली के प्रकार

टपक सिंचाई प्रणाली को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है|

टपक (ड्रिप) लैटरल के आधार पर

उप-सतही टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली- इस विधि में लैटरल पाइपों को पौधों की जड़ क्षेत्र में जमीन की सतह के नीचे बिछाते हैं|

सतही टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली- इसमें लैटरल पाइपों को जमीन पर बिछाते हैं एवं ड्रिपरों को लैटरल पाइप से जोड़ दिया जाता है|

ड्रिपर्स की बनावट के आधार पर

ऑन लाइन- इस विधि में ड्रिपर्स को लैटरल पाइप के ऊपर लगाते हैं|

इन लाइन- इस विधि में ड्रिपर्स को लैटरल पाइप का निर्माण करते समय अन्दर डाल दिया जाता है, लैटरल पाइप में ड्रिपर्स पास-पास एक निश्चित दूरी पर लगे होते हैं|

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प्रणाली के मुख्य घटक

 मुख्य पाइप लाइन- मुख्य पाइप लाइन जो पीवीसी या एचडीपीई से बना होता है, जमीन से आमतौर पर 2 फुट की गहराई में रहता है, इसका कार्य पानी के मुख्य स्रोत से प्रक्षेत्र तक लाने का होता है|

उप-मुख्य पाइप लाइन- यह पीवीसी या एचडीपीई से बना होता है, मुख्य पाइप लाइन की तरह ही 2 फुट की गहराई में रहता है, सबमेन या उपमुख्य पाइप का मुख्य कार्य मुख्य पाइप से पानी लेकर लैटरल पाइप को पानी पहुँचना होता है|

लैटरल पाइप- उप-मुख्य पाइप से पतले काले प्लास्टिक के पाइप पौधों की कतारों के साथ-साथ डाले जाते हैं, जिन्हें लैटरल पाइप कहा जाता है|

ड्रिपर्स- यह पॉली-प्रोपीलीन प्लास्टिक से बने होते हैं, जिसको लैटरल पाइप से जोड़ दिया जाता है, इसके माध्यम से पौधे की जड़ में सीधे पानी पहुँच जाता है, सिंचाई हेतु विभिन्न प्रकार के ड्रिपर्स का प्रयोग किया जाता है|

फिल्टर्स या छन्नक- यह ड्रिप सिंचाई प्रणाली का एक अति आवश्यक घटक है, फिल्टर का मुख्य कार्य जल स्रोत से आने वाले पानी को मेन पाइप लाइन में भेजने से पूर्व साफ करना होता है|

बाई पास यूनिट- यदि जलस्रोत से आवश्यकता से अधिक जल प्राप्त हो रहा है, तो बाई पास यूनिट के माध्यम से शेष जल का अन्यन्त्र प्रयोग किया जा सकता है|

फल्श वाल्व- इसका मुख्य कार्य मुख्य एवं उप-मुख्य पाइपों में जल के साथ आकर जमी गन्दगी को साफ करना होता है|

उर्वरक (मिश्रण) यूनिट- इस यूनिट के द्वारा जल के साथ-साथ उर्वरकों को भी सीधे पौधे की जड़ के पास तक पहुँचाया जाता है|

पम्प और मोटर- जल स्रोत से जल उठाने के लिए मोटर एवं पम्प का प्रयोग किया जाता है|

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प्रणाली की स्थापना और संचालन

टपक सिंचाई प्रणाली के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के लिये इसको लगाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है, जैसे-

1. कम-से-कम फिटिंग्स जैसे एलबो तथा बेन्डस् आदि का प्रयोग करना|

2. बलुई या जाली फिल्टर को ड्रिप सिंचाई यूनिट के मुख्य पाइप से सीधे जोड़ना|

3. पम्प से निकले हुए आवश्यकता से अधिक जल को निकालने के लिए बाई पास यूनिट की व्यवस्था करना|

4. बलुई फिल्टर को सीमेंट के फर्श पर लगाना चाहिये, जिससे यूनिट के चलने पर इसमें कम्पन नहीं हो|

5. फिल्टर के दोनों ओर दबाव मापी अवश्य लगाना चाहिये|

6. मुख्य पाइप एवं उप मुख्य पाइप को जमीन के अन्दर 2 फीट की गहराई पर बिछाना चाहिये|

7. ड्रिपरों को लैटरल पाइप के ऊपर हुए छिद्रों पर रखकर दबाना चाहिये|

8. ऐंड कैप लैटरल पाइप के अन्तिम सिरों पर लगाकर लैटरल पाइपों को बन्द कर दें|

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सिंचाई अन्तराल- कृषकों को टपक की दो सिंचाइयों के बीच ऐसा अन्तराल रखना चाहिये, जिससे मृदा में आवश्यक नमी बनी रहे एवं पौधों को जल की कमी महसूस नहीं हो, आमतौर पर दो सिंचाइयों में अन्तर को 3 दिन से अधिक नहीं रखा जाता है, दो सिंचाइयों के बीच का अन्तराल जलवायु एवं मृदा के ऊपर निर्भर करता है, जो इस प्रकार है, जैसे-

जलवायु  रेतीली मिट्टी  हल्की दोमट मिट्टी  चिकनी मिट्टी 
गर्म और शुष्क दिन में 2 बार 1 या 2 दिन के अन्तर से 2 या 3 दिन के अन्तर से
मध्यम दिन में एक बार 2 या 3 दिन के अन्तर से 3 दिन के अन्तर से
ठंडी दिन में एक बार 2 या 3 दिन के अन्तर से 4 दिन के अन्तर से

प्रबंधन और देखभाल

लम्बे समय तक बिना किसी बाधा के कार्य लेने के लिए ड्रिप प्रणाली की नियमित रूप से देखभाल करना अति आवश्यक है| प्रणाली के रख-रखाव के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना लाभकारी होता है, जैसे-

1. फिल्टरों की रबड़, वाल्व और विभिन्न फिटिंग्स की जाँच नियमित रूप से करते रहना चाहिए, यदि उनमें किसी भी प्रकार का रिसाव हो तो उसको तुरन्त ठीक करें|

2. उपमुख्य पाइप में दबाव 1 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होना चाहिये|

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3. ड्रिपरों द्वारा नम किये जाने वाले क्षेत्रफल का लगातार निरीक्षण करते रहना चाहिये तथा असमानता होने पर तुरन्त आवश्यक कार्रवाई करना चाहिये|

4. लैटरल पाइपों के अवांछित छेदों को गूफ ड्रिप सिंचाई पद्धति की स्थापना प्लग के द्वारा बन्द किया जा सकता है| यदि लैटरल पाइप कटा हुआ है, तो सीधे जोड़क द्वारा जोड़ा जा सकता है|

5. उप मुख्य पाइप के सिरों पर प्रक्षालन वाल्व एवं लैटरल पाइपों के खुले सिरों को ऐंडकैप से बन्द रखना चाहिये, यदि इन्हें खुला रखा जाए, तो इन बिन्दुओं पर दबाव में कमी के साथ-साथ जल की हानि भी हो सकती है|

6. लैटरल पाइपों को खेत से हटाते समय बड़े गोले के आकार में मोड़ना चाहिये|

7. फसल कटाई के समय, ट्रैक्टर या बैलगाड़ी खेत में नहीं लाना चाहिये, ये पाइपों को नुकसान पहुँचा सकते हैं|

8. यदि कुछ ड्रिपरों से जल की फुहार निकल रही है, तो इसका कारण चकती या दाब अतिपूरक ड्रिपर्स से रबर का डायाफ्राम गिर जाना हो सकता है, जिसे तुरन्त लगाना चाहिये|

9. यदि ड्रिपर कुछ दिनों के लिए बन्द रहें, तो सम्भव है कि मकड़ी या अन्य कीट अपना जाले बना ले जिससे जल का स्राव कम हो जाता है। इसलिए नियमित रूप से ड्रिपर्स को खोल कर साफ करना चाहिये|

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10. बरसात के मौसम में खेत में बिछे सभी लेटरल पाइप को हटा देना चाहिये, हटाते समय उन्हें सही तरीके से मोडना चाहिये जिससे पाइप मुड़ें नहीं|

11. प्रति सप्ताह एक बार बलुई फिल्टर का ढक्कन खोल कर फिल्टर के भीतर की रेत को हाथ से मसलकर कूड़ा-कचरा बाहर निकाल देना चाहिये|

12. जालीदार फिल्टर का ढक्कन खोलकर अन्दर का फिल्टर- बेलन साफ करना चाहिये|

सरकारी अनुदान 

यह केन्द्र पोषित योजना है, जो विभिन्न राज्यों में टपक (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली को औद्यानिक मिशन के अन्तर्गत लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा केन्द्र पोषित योजना-सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली लागू की गयी है, यह एक केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजक योजना है| जिसमें सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली की कुल लागत में से 40 प्रतिशत हिस्सा केन्द्र सरकार, 10 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार और शेष 50 प्रतिशत हिस्सा लाभार्थी (किसान) द्वारा वहन किया जाना है| लाभार्थी इसे स्वयं अपने संसाधनों से या वित्तीय संगठनों से आसान कर्ज द्वारा वहन कर सकते हैं|

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संबंधित लिंक- पीएमकेएसवाई

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