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टमाटर की संकर व उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

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टमाटर की संकर व उन्नत किस्में

टमाटर की अधिकतम पैदावार के लिए संकर या उन्नत किस्म का चयन करना आवश्यक है| क्योंकि टमाटर की खेती एक व्यवसाय के रूप में अपना स्थान रखती है| इसका सब्जी उत्पादन में विशेष योगदान है| इसकी खेती पूरे भारत वर्ष में की जाती है| टमाटर की दो प्रकार की किस्में पायी जाती है| एक सामान्य उन्नतशील किस्में, दूसरी संकर किस्में, इनमें भी दो तरह की किस्में होती है, एक सीमित बढवार वाली, दूसरी असीमित बढवार वाली इसके साथ ही कुछ रोग अवरोधी किस्में होती है| इस लेख में टमाटर की संकर व उन्नत किस्मों तथा उनकी विशेषताओं और पैदावार की जानकारी का उल्लेख है| टमाटर से उन्नत उत्पादन की जानकारी यहाँ पढ़ें- टमाटर की उन्नत खेती कैसे करें

टमाटर की संकर व उन्नत किस्में

संकर किस्में

सिमित बढवार वाली- रश्मी, रुपाली, अजन्ता, पूसा हाइब्रिड- 2, मंगला, वैशाली, मैत्री, अविनाश 22, स्वर्ण वैभव, स्वर्ण समृद्धि और ऋषि आदि प्रमुख है|

असीमित बढवार वाली- अर्का रक्षक (एफ), अर्का सम्राट (एफ), नवीन सोनाली, लैरिका और रत्ना आदि प्रमुख है|

उन्नत किस्में

हिसार अरुण, पंजाब छुहारा, अर्का विकास, अर्का सौरभ, काशी अमृत, पन्त टमाटर- 3, कल्यानपुर टाइप- 3, आजाद टी- 5, आजाद टी- 6, काशी, पूसा अर्ली, काशी अनुपम पूसा गौरव, पन्त बिहार, हिसार ललित (एन टी- 8) आदि प्रमुख है|

रोग अवरोधी- अर्का रक्षक (एफ), अर्का सम्राट (एफ), मोहनी, रत्ना, मिनाक्षी, मैत्री, मेनिका और ऋषि आदि प्रमुख है|

यह भी पढ़ें- आलू की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

टमाटर की संकर व उन्नत किस्मों की विशेषताएं और पैदावार 

अर्का रक्षक

यह उच्च उपज वाली एफ, संकर किस्म है, जो टमाटर के तीन प्रमुख रोगों, पत्ती मोड़क विषाणु, जीवाणु झुलसा व अगेती धब्बे की प्रतिरोधी है| इसके फल चौकोर से गोल, वज़न मध्यम से भारी 75 से 100 ग्राम, दृढ़ तथा गहरे लाल रंग के होते हैं| इसके फलों को सामान्य तापमान पर 15 से 20 दिन तक आसानी से बाहर रखा जा सकता है, जिस कारण इसे दूर-दराज़ के क्षेत्रों में भेजने में सुविधा होती है| इसे ताजे फलों के रूप में तथा प्रसंस्करण हेतु विकसित किया गया है| इसे खरीफ, रबी व गर्मी के मौसम में उगाया जा सकता है| इसकी पैदावार 140 से 150 दिन में लगभग 400 से 500 क्विंटल प्रति एकड़ है|

अर्का सम्राट

यह उच्च उपज वाली एफ, संकर किस्म है, जो टमाटर के तीन प्रमुख रोगों, पत्ती मोड़क विषाणु, जीवाणु झुलसा व अगेती धब्बे की प्रतिरोधी है| इसके फल आकार में चपटे गोल, बड़े व वज़न 100 से 120 ग्राम, दृढ़ और गहरे लाल रंग के होते हैं| इसके फलों को सामान्य तापमान में 15 से 20 दिन तक आसानी से बाहर रखा जा सकता है, जिस कारण इसे दूर-दराज़ के क्षेत्रों में भेजने में सुविधा होती है| इसे ताजे फलों के रूप में बेचने हेतु विकसित किया गया है एवं इसे खरीफ, रबी व गर्मी के मौसम में उगाया जा सकता है| इसकी पैदावार 140 से 150 दिन में लगभग 400 से 500 क्विंटल प्रति एकड़ है|

स्वर्ण वैभव

यह संकर किस्म है, इसके फल गहरे लाल रंग के गोल 140 से 150 ग्राम, ठोस और कुल घुलनशील पदार्थ 5 प्रतिशत दूरवर्ती बाजार तथा प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त, और सिमित बढ़वार वाली किस्म, बिहार, झारखण्ड, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में खेती के लिए अनुमोदित, पहली तुड़ाई की अवधि 55 से 60 दिन और औसतन पैदावार 900 से 1000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|

यह भी पढ़ें- सब्जियों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें, जानिए उत्तम पैदावार की जानकारी

स्वर्ण समृद्धि

इस संकर किस्म के फल लाल, ठोस, वजन 70 से 80 ग्राम तथा कुल घुलनशील पदार्थ 5 से 6 प्रतिशत, जीवानुज मुरझा और अगेती अंगमारी रोगों के लिए प्रतिरोधी और सिमित बढ़वार वाली, रोपाई के 55 से 60 दिन बाद फल प्रथम तुड़ाई के लिए तैयार, औसत पैदावार 1000 से 1050 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में खेती के लिए अनुमोदित है|

दिव्या

यह टमाटर की संकर किस्म रोपाई से 75 से 90 दिन में फल देने लगती है, यह किस्म पछेता झुलसा और आँख सडन रोग रोधी किस्म है, इसके फल लम्बे समय तक ख़राब नहीं होते है| पैदावार प्रति हेक्टेयर 400 से 500 क्विंटल तक प्राप्त होती है|

हिसार अरुण (सेलेक्शन- 7)

यह टमाटर की किस्म पूसा अर्ली डुआर्फ व के- 1 के संकरण से विकसित की गई है, इसके पौधे छोटे, पौधों पर फल काफी मात्रा में लगते है| इसके फल सामान्यतया लगभग एक ही समय पर पकते है| जो मध्यम से बड़े आकार के होते है, यह काफी अगेती किस्म है| यह एच एस- 110 किस्म से करीब 12 से 15 प्रतिशत से अधिक पैदावार देती है, इस किस्म की बसंत व वर्षा ऋतु में उगाने के लिए सिफारिश की गई है|

पूसा गौरव

इस टमाटर की किस्म के फल चिकने मध्यम आकार के तथा पूरी तरह लाल रंग के होते ,है फलों का छिलका मोटा होता है| इसलिए इन्हें दूर बाजारों में बिक्री हेतु भेजा सकता है| इस किस्म के फल डिब्बा बंदी के लिए भी उपयुक्त होते है| इसे बसंत गर्मी और खरीफ के मौसम में उगाया जा सकता है तथा इसकी औसत पैदावार 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|

यह भी पढ़ें- प्याज की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

पूसा शीतल

इस टमाटर की किस्म की यह विशेषता है, की यह कम तापमान पर भी फल बना लेती है तथा इसी कारण इसकी खेती मैदानी भाग में ठण्ड में भी की जा सकती है| इसके फल फ़रवरी के अंत और मार्च में पककर तैयार होने लगते है, बाजार में फलों को अगेते भेजने से किसानों को अच्छा लाभ मिलता है, इस किस्म के फल मध्यम आकार के तथा सुन्दर लाल रंग के होते है| यह किस्म 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है|

पूसा रूबी

टमाटर की यह उन्नत किस्म है| यह एक अगेती किस्म है, जिसके फल रोपाई के 60 से 65 दिन में तैयार हो जाते है| इसके पौधे लम्बे तथा थोड़े फैले, फल चपटे, गोल, मध्यम आकार के एवं पकने पर लाल रंग के हो जाते है| फल अधिक रसदार तथा थोडा खट्टापन लिए होते है| जिसके कारण जल्दी ख़राब हो जाते है, यह किस्म रस निकालने और चटनी बनाने के लिए अच्छी है| उत्तरी भारत में उगाई जाने वाली यह प्रमुख किस्म है| इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|

पन्त बिहार

इस टमाटर की किस्म के फल पूसा रूबी से आकर्षक और आकार में बड़े होते है| यह रूबी से अधिक पैदावार देने वाली किस्म है| रोपाई के 80 दिन बाद पहली तुड़ाई केलिए तैयार हो जाते है| यह वर्ती सीलीयम व फ्यूजेरियम मुरझान के लिए प्रति रोधी किस्म है|

यह भी पढ़ें- सब्जियों की कार्बनिक खेती कैसे करें, जानिए आधुनिक विधि

हिसार ललित (एन टी- 8)

यह टमाटर की किस्म आर बी व एच एस 101 के संस्करण से तैयार की गई है, इस किस्म में रुट नाट नेमा टोड (जड़ गांठ सूत्र कृमि ) नामक रोग नहीं लगता है| इस किस्म को ऐसे रोग ग्रसित खेतों में उपजाने पर भी औसत पैदावार 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल जाती है|

एच एस- 101

यह टमाटर की उन्नत किस्म है, इसके फल पूसा रूबी की अपेक्षा 10 से 15 दिन पहले पकने शुरू कर देते है| फलों का गुदा कुछ मोटा होता है, इसलिए पूसा रूबी की अपेक्षा इसकी भण्डारण क्षमता अधिक होती है| यह प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल तक पैदावार देती है|

एच एस- 102

यह टमाटर की उन्नत किस्म है, इस किस्म के पौधे बौने रह जाते है| फल चपटे गोल मध्यम आकार वाले तथा हलके धारीदार होते है| रोपाई के 85 से 90 दिनों बाद फल पकने शुरू हो जाते है| फलों का छिलका मोटा व लाल होता है| यह प्रति हेक्टेयर 250 से 275 क्विंटल तक पैदावार दे देती है|

यह भी पढ़ें- सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार कैसे करें, जानिए आधुनिक विधि

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