दीमक (Termite) एक खतरनाक एवं बहुजातीय कीट है| एक समूह कार्यों के आधार पर कई श्रेणियों में विभाजित होता है, जैसे- राजा, रानी, श्रमिक और सैनिक दीमक, इनमें से केवल श्रमिक दीमक ही सभी प्रकार की हानि के लिए उत्तरदायी होती हैं| ये अनके कृषि फसलों, वृक्षों, सब्जियों जैसे- गन्ना, गेहूं, मक्का, मूंगफली, जौ, चना इत्यादि फसलों में भारी नुकसान पहुचाती हैं|
श्रमिक दीमक बोये हुए बीजों तथा अंकुरित पौधों की जड़ों को नष्ट कर देती हैं| जिसके कारण पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं, एवं खींचने पर आसानी से उखड़ जाते हैं| दीमक गोदामों और घरों में लकड़ी की बनी वस्तुओं, कागज तथा कपडों को भारी नुकसान पहुचाती है| आमतौर पर दीमक बारिश पर आश्रित फसलों को सिंचित फसलों की तुलना में ज्यादा हानि पहुँचाती हैं|
दीमक की कई प्रजातियां भूमि के ऊपर मिट्टी के अनेक प्रकार के मिट्टी के टीले बनाती हैं| कुछ जातियां भूमि के अन्दर ही नालियां बनाकर और कुछ दीवारों, भूमि के ऊपर से छिपी हुई नलियां बनाकर एक जगह से दूसरी जगह पहुचती हैं| आमतौर पर दीमक कमजोर तथा रोगग्रस्त फसलों एवं वृक्षों को अधिक नुकसान पहुंचाती हैं|
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दीमक का रासायनिक प्रबंधन
गेहूं की फसल का दीमक से बचाव
गेहूं में इसकी माइकोटर्मिस ओबेसाई, ओडोन्टोटर्मिस ओबेसस, माइकोसीरोटर्मिस टेन्यूगनेथस और ट्राइनर्विटर्मिस बाईफोरमिस इत्यादि प्रजातियां हानि पहुँचाती हैं| दीमक गेहूं के पौधों की जड़ों को खाती हैं, जिसके कारण पौधे भूमि से पोषक तत्व नहीं ग्रहण कर पाते हैं| परिणामस्वरूप पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और अन्त में पौधे सूख कर जमीन पर गिर जाते हैं|
अधिक दीमकग्रस्त क्षेत्रों में गहरी जुताई के समय भूमि में निचे लिखित दीमकनाशी कोई भी एक रसायनों का प्रयोग करना चाहिए, जैसे-
1. क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी, 3 से 5 लीटर प्रति हेक्टेयर
2. क्विनलफास 1.5 प्रतिशत धूल, 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
3. फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत जी, 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
4. इमीडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस एल,1 लीटर प्रति हेक्टेयर
उपरोक्त रसायनों से गेहूं के बीज या फसल को निम्न तरीके से उपचारित करना चाहिए, जैसे-
1. बुवाई से पहले बीजों के उपचार के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी, 4.5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज का उपयोग करे| दीमकनाशी रासायन की मात्रा दी गयी मात्रा से अधिक नहीं होनी चाहिए|
2. गेहूं के बीज को इमीडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस एल, 3. 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज या फिप्रोनिल (रोजेन्ट 5 एफ एस 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से उपचारित करना चाहिए|
3. यदि बीज का उपचार नहीं किया गया है, तो खेत में पहली सिंचाई के समय क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 3 लीटर को 50 किलोग्राम सूखी मिट्टी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में बिखेर कर सिचाई करें|
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गन्ना की फसल का दीमक से बचाव
गन्ने की फसल में दीमक बुवाई के लिए तैयार गन्ने के टुकडों से लेकर फसल के अंत तक नुकसान पहुँचाती है| गन्ने की फसल में हानि पहुँचाने वाली कोपटोटर्मिस हाईमाई, एरोमोटर्मिस पैराडोक्सेलिस, ओडोन्टोटर्मिस ओबेसस, ओडोन्टोटर्मिस वैलोनेनसिस और ट्राइनर्विटर्मिस बाईफोरमिस इत्यादि जातियां हैं| गन्ने की फसलों में इसका प्रकोप आमतौर पर दो अवस्थाओं में पाया जाता है, जैसे-
1. मानसून से पहले जब गन्ने के टुकड़ों की बुवाई की जाती है| दीमक गन्ने के टुकड़े के बीच के मुलायम भाग को खाकर उसमे मिट्टी भर देती है तथा केवल बाहर का कडा खोल रह जाता है, जिसके कारण टुकडों पर उगी हुई कलिकायें (आंख) पोषण न मिलने के कारण सूख जाती हैं और नया पौधा तैयार नहीं होता है|
2. मानसून के बाद इस अवस्था में दीमक गन्ने के पौधे की जडों को खा जाती है| जिसके कारण पौधा भूमि से पोषक तत्व ग्रहण नहीं कर पाता है एवं पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और कुछ दिनों में पूरा पौधा सूख कर नीचे जमीन पर गिर जाता है|
रोकथाम के उपाय-
1. बुवाई के लिए तैयार गन्ने के टुकड़ों को इमीडाक्लोप्रिड 70 डब्लू एस, 1.5 से 2 मिलीलीटर लीटर पानी के घोल में 1 से 2 छंटे तक डुबोकर रखें और इसके बाद उनकी बुवाई करें|
2. इमीडाक्लोप्रिड 200 एस एल को 250 से 375 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर को 800 लीटर पानी में मिलाकर गन्ने के टुकडों पर छिडकाव करना चाहिए|
3. गन्ने की फसल में कुछ अन्य दीमकनाशी रसायन जैसे- फोरेट 10 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या क्लोरोपाइरीफास 15 जी 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भूमि में मिलाकर गन्ना बोयें|
4. बुवाई के लिए गन्ने के छोटे टुकड़े करने चाहिए, जिसमें कलिकायें पास-पास एवं संख्या में अधिक होगी, यदि इसका प्रकोप होता है, तो कुछ कलिकायें उगने में सक्षम हो सकती हैं|
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धान की फसल का दीमक से बचाव
भारत में धान तीन प्रकार की भूमि में उगाई जाती है, जैसे- उथली (हाई लैण्ड), मध्यम (मिडियम लैण्ड) और निचली (लो लैण्ड)| धान में आमतौर पर एनाकैन्थोटर्मिस वाइरम और माइकोसीरोटर्मिस जाति की दीमक हानि पहुँचाती है| कम पानी वाले क्षेत्रों में धान की फसल को इसे अधिक हानि पहुचाती है|
1. अधिक दीमकग्रस्त क्षेत्रों में गहरी जुताई के समय उपरोक्त गेहूं की फसल के अनुसार भूमि में दीमकनाशी रसायनों का प्रयोग करे|
2. धान की रोपाई के बाद यदि दीमक फसल को नुकसान पहुँचा रही है, तो क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 5 लीटर प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बालू मिट्टी में मिलाकर बुरकाव करें|
मक्का की फसल का दीमक से बचाव
1. मक्का के बीजों को बोने से पहले क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम से उपचार करना चाहिए|
2. अधिक दीमकग्रस्त क्षेत्रों में फसल के पकने के एक से डेढ महीना पहले क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या इमीडाक्लोप्रिड 200 एस एल को 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का जडों में छिडकाव करना चाहिए|
3. इस मक्का की फसल को पशुओं के चारे के लिए उपयोग न करें|
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मूंगफली की फसल का दीमक से बचाव
मूंगफली में हानि पहुंचाने वाली इसकी आमतौर पर दो जातियां ओडोन्टोटर्मिस ओबेसस और ट्राइनर्विटर्मिस बाईफोरमिस इत्यादि लिपिबद्ध की गई है| दीमक मूंगफली के पौधों एवं बीज दोनों को हानि पहुंचाती है|
रोकथाम के उपाय-
1. बीजो को बोने से पहले क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 12 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें|
2. अगर बीज उपचारित नहीं किया गया है, तो क्लोरोपाइरीफास 10 जी की 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा खेत में मिलाकर बुवाई करें|
कपास की फसल का दीमक से बचाव
हमारे देश में कपास सिंचित और असिंचित दोनों परिस्थितियों में उगाई जाती है| दीमक की आमतौर पर तीन जातियां, ओडोन्योटर्मिस ओबेसस, माईकोटर्मिस ओबेसाई और ट्रार्डनरविमिस बाईफोरमिस कपास में हानि पहुँचाती है| दीमक कपास के पौधों जड़ एवं तने दोनों को नुकसान पहुचाती है|
रोकथाम के उपाय-
अगर बीज उपचारित नहीं किया गया है, तथा भूमि में दीमक का प्रकोप है, तो खेत में पहली सिंचाई के समय क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 3 से 5 लीटर को 50 किलोग्राम सूखी मिट्टी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में बिखेरकर सिंचाई करें|
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बाजरा फसल का दीमक से बचाव
भारत के शुष्क क्षेत्र जैसे- राजस्थान में बाजरे की फसल को माइकोटर्मिस ओबेसाई जाति की दीमक अत्यधिक नुकसान पहुँचाती है|
रोकथाम के उपाय-
अगर बीज उपचारित नहीं किया गया है तथा भूमि में इसका प्रकोप है, तो खेत में पहली सिंचाई के समय क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 3 से 5 लीटर को 50 किलोग्राम सूखी मिट्टी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में बिखेरकर सिंचाई करें|
ज्वार फसल का दीमक से बचाव
हमारे भारत में ज्वार के पौधे को ओडोन्टोटर्मिस ओबेसस जाति की दीमक अत्यधिक नुकसान पहुंचाती है| दीमक का प्रकोप उन पौधों में अधिक लिपिबद्ध किया गया है, जिसकी उँचाई 15 सेंटीमीटर से कम होती है|
बचाव के उपाय-
अगर बीज उपचारित नहीं किया गया है एवं भूमि में दीमक का प्रकोप है, तो खेत में पहली सिंचाई के समय क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 3 से 5 लीटर को 50 किलोग्राम को सूखी मिट्टी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में बिखेरकर सिंचाई करें|
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दलहन फसलों का दीमक से बचाव
अपने देश में इसकी कुछ जातियां दलहन फसलों पर भी आक्रमण करती है, जैसे- ओडोन्टोटर्मिस जाति की दीमक देश के पहाड़ी क्षेत्रों में अरहर को भारी नुकसान और महाराष्ट्र, तमिलनाडु में कुछ कम नुकसान करती है| दीमक बंगाली चने और अन्य दालों पर वृद्धि की भिन्न अवस्थाओं में आक्रमण करती है|
सब्जियों का फसलों का दीमक से बचाव
अनेक सब्जियों में इसका आक्रमण लिपिबद्ध किया जा चुका है, आलू की फसल में डाईकपसीडीटर्मिस और एरीमोंटर्मिस जाति की दीमक का आक्रमण लिपिबद्ध किया जा चुका है| कुछ अन्य सब्जियां जैसे बन्द गोभी, फूल गोभी, बैंगन, सीताफल इत्यादि में भी दीमक भारी नुकसान पहुँचाती है| दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में बन्द गोभी को दीमक बहुत अधिक हानि पहुँचाती है|
रोकथाम के उपाय-
फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा से भूमि में छिडकाव करना चाहिए| अधिक प्रकोप होने पर कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए|
चाय फसल का दीमक से बचाव
भारत में चाय के पौधों में इसकी कुछ जातियाँ जैसे- नीयोटर्मिस, गिल्पटोटर्मिस, ओडोन्टोटर्मिस, माइकोटर्मिस, नीयोटर्मिस, गिल्पटोटर्मिस और माइक्रोटर्मिस इत्यादि भारी नुकसान पहुँचाती हैं| ये दीमक चाय के तने और जड दोनों को खाती है|
रोकथाम के उपाय- चाय के पोधों में इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 20 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी या इमीडाक्लोप्रिड 200 एस एल 4 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए|
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फल वृक्ष और दीमक
अनेक फल वृक्षों पर इसका भारी आक्रमण लिपिबद्ध किया जा चुका है, जैसे-
सेब के वृक्षों में- बाईफिडिटर्मिस बिसोनाई,
चीकू के वृक्षों में- ओडोन्टीर्मिस और ट्राईनरवटर्मिस
नीबू के वृक्षों में- ओडोन्टीर्मिस और ट्राईनर्विटर्मिस
अमरूद व अंगूर के वृक्षों में- ओडोन्टोटर्मिस ओबेसस,
आम के वृक्षों में- कोपटोटर्मिस माइकोसीरोटर्मिस बीसोनाई और ओडोन्टोटर्मिस
शहतूत में- एनाकैन्थोटर्मिस मैक्रोसिफैलस, हेटरोटर्मिस इन्डीकोला, कोपटोटर्मिस हाईमाई
आडू में- माइकोटर्मिस मैकरोसिफैलस जाति की दीमक मुख्य रूप से अगस्त से दिसम्बर माह के दौरान आडू के वृक्ष की जड़ से आक्रमण शुरू करके तने के बीज के भाग से होकर वृक्ष को नुकसान पहुँचाती है|
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फल-वृक्षों की दीमक से रोकथाम के उपाय-
1. बगीचों से पौधों के अवशेषों, सूखी लकड़ियों और दीमक ग्रस्त पौधे को तुरत हटा देना चाहिए|
2. वृक्षों के तने पर 5 से 6 फीट की ऊंचाई तक कापरआक्सीक्लोराइड या कोलतार को घोल से पुताई करें|
3. पौधे लगाने से पहले गड्ढों को चारों ओर से दीमकनाशी रसायन से उपचारित करें|
सस्य या कृषि क्रियाओं द्वारा दीमक की रोकथाम-
1. दीमकनाशी रसायन का उपयोग सीधा सिंचाई के पानी के साथ न करें|
2. यह आमतौर पर रोग एवं कीट ग्रस्त पौधों को ज्यादा नुकसान पहुँचाती है, इसलिए फसल को स्वस्थ रखने का प्रयास करें|
3. फसल अवशेष जैसे- जड़, तना, पत्तियां, पुराने बीज आदि को खेत से बाहर निकालकर जला दें या कम्पोस्ट खाद बनाकर खेत में डालें|
4. कच्चा गोबर खेत में न डालें|
5. मानसून से पहले खेत की दो-तीन बार गहरी जुताई करके उसको खुला छोड दें, जिसमें दीमक द्वारा बनाई गई नालियां एवं दीमक नष्ट हो जाएगी|
6. धान की फसल के बाद मूंगफली की फसल में दीमक का प्रकोप कम पाया जाता है|
7. खेत की मेंड को समय-समय पर खरपतवार रहित और इसकी जुताई करने से दीमक का प्रकोप कम हो जाता है|
8. दीमक द्वारा बनाये गये भूमि के ऊपर मिटटी के टीलों को दीमकनाशी घोल (क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 10 से 20 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल) से उपचारित किया जाना चाहिए या रानी दीमक को खोज कर मार देना चाहिए|
9. खेत की बाड़ या अन्य जगह पर यदि लकड़ी की बल्लियां आदि लगानी हों तो उनके सिरों को कोलतार से पुताई करें या उनको कोलतार के घोल में कुछ घंटों तक मंदी आंच पर भिगोने के बाद सुखाकर जमीन में गाढे|
10. अधिक जानकारी के लिए कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए|
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