
भारत की खरीफ की नकदी फसलों में नरमा (अमेरिकन) कपास का महत्वपूर्ण स्थान है| लेकिन क्षेत्रफल के अनुसार किसानों को इसकी पैदावार नही मिलती है| परन्तु कई प्रगतिशील किसान उन्नत कृषि क्रियाएं अपनाकर नरमा (अमेरिकन) कपास की अच्छी पैदावार लेने में सफल हुए हैं| इसका मतलब है, कि उन्नत किस्मों व खेती के उन्नत ढंगों को अपनाने से पैदावार को बढ़ाया जा सकता है|
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कपास की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उन्नत किस्मों को सही समय पर बोने, उपयुक्त खाद देने व समय पर पौध संरक्षण उपाय अपनाने की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये| इस लेख में नरमा (अमेरिकन) कपास की खेती कैसे करें और इसकी उपयोगी एवं आधुनिक तकनीक का उल्लेख है| कपास की खेती की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास की खेती कैसे करें
भूमि का चुनाव
नरमा (अमेरिकन) कपास की खेती के लिए मध्यम किस्म की भूमि अधिक उपयुक्त रहती है| बिलकुल रेतीली भूमि इसके लिए अच्छी नहीं रहती है| जिन खेतों में पानी भरे रहने तथा क्षारीयता की समस्या है, उनमें नरमा नहीं बोना चाहिए|
खेत की तैयारी
जो खेत नरमे के लिए पड़त रखे गये हैं उनकी तैयारी पिछली फसल काटते ही शुरू कर देनी चाहिए| गेहूं के बाद नरमा लेने के लिए गेहूं काटते ही खेत की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए| ऐसे खतों में समय पर दो से तीन जुताई करके खेत को तैयार कर लें| गेहूं की फसल की कटाई के बाद एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से कर 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर से करना लाभप्रद रहता है| मिट्टी पलटने वाले हल से पहली गहरी जुताई करना लाभप्रद है|
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पलेवा और भूमि उपचार
नरमे के लिए पलेवा की गहरी सिंचाई करना आवश्यक है| पलेवा के बाद जुताई करने से पहले दीमक प्रभावित खेतों में क्यूनालफॉस 4 प्रतिशत चूर्ण या मिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 6 किलो प्रति बीघा की दर से डालना चाहिए| बुवाई दिन के ठण्डे समय में करनी चाहिए, जिससे खेत की नमी कम उड़े एवं बीज का जमाव अच्छा हो सके|
जिन खेतों में बालू उड़ने से पौधों के मरने की समस्या है, उनमें रबी की फसल को कटाई के बाद खेत को बिना जुताई किए डण्ठल छांट कर पलेवा करने से फसल का बचाव किया जा सकता है|
उन्नत एवं संकर किस्में
यदि किस्मों की बात करें तो किसान भाइयों को अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म की बुआई करनी चाहिए| लेकिन यहाँ कुछ मुख्य किस्म इस प्रकार है, जैसे-
नरमा की उन्नत किस्मों- में एच एस- 6, एच- 1098, एच- 1117, एच- 1226, एच- 1098 (संशोधित), एच- 1236, एच- 1300, आर एस- 2013, आर एस- 810, आर एस टी- 9, बीकानेरी नरमा और आर एस- 875 प्रमुख है|
नरमा की संकर किस्मों- में एच एच एच- 223, एच एच एच- 287 और राज एच एच- 16 प्रमुख है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अमेरिकन कपास (नरमा) की उन्नत एवं संकर किस्में, जानिए विशेषता और पैदावार
फसल चक्र
1. गेहूं – नरमा
2. ग्वार – पड़त – नरमा
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3. चना – नरमा
4. पड़त – नरमा|
बुवाई का उपयुक्त समय
नरमा की बुआई अप्रेल के अंतिम सप्ताह से 20 मई तक उपयुक्त रहती है| साधारणतया मई माह में बुवाई कर सकते है| विशेष किस्मों में नरमा की बुवाई का उपयुक्त समय 15 अप्रेल से 15 मई तक है, परन्तु बुवाई मई के अंत तक भी की जा सकती है|
बीज उपचार
1. नरमा कपास के बीजों से रेशे हटाने के लिए जहां तक सम्भव हो व्यापारिक गंधक के तेजाब को प्रयोग करें|
2. बीज के अन्दर पाई जाने वाली गुलाबी लट की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार 4 से 40 किलो बीज को 3 ग्राम एल्युमिनियम फास्फाईड से कम से कम 24 घण्टे घूमित करें|
3. रेशे रहित एक किलोग्राम नरमे के बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस से उपचारित करें|
4. जीवाणु अंगमारी रोग की रोकथाम हेतु बोये जाने वाले प्रति बीघा बीज को एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाईक्लिन से उपचारित करें|
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5. जड़गलन के लिए भूमि उपचार हेतु बुवाई से पूर्व 6 किलोग्राम व्यापारिक जिंक सल्फेट प्रति बीघा की दर से मिट्टी में डालकर मिला दें|
6. यदि जड़ गलन रोग का प्रकोप अधिक है तो उन खेतों के लिए बुवाई के पूर्व 2.5 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा हरजेनियम को 50 किलोग्राम आर्द्रता युक्त गोबर की खाद (एफ वाई एम) में अच्छी तरह मिलाकर बुवाई के समय एक बीघा में पलेवा करते समय मिट्टी में मिला दें|
7. बीज उपचार हेतु रासायनिक फरूंदनाशी जैसे कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यू पी, 3 ग्राम प्रति किलो बीज या कार्बेन्डेजिम 50 डब्ल्यू पी, से 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें| भूमि और बीज उपचार की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास के अधिक उत्पादन के लिए भूमि व बीज उपचार कैसे करें
बीज की मात्रा एवं बुवाई
1.नरमा के लिए चार किलो प्रमाणित बीज प्रति एकड़ डालना चाहिए|
2. नरमा का बीज लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर डालें|
3. बुवाई कपास ड्रिल से 60 से 67 सेंटीमीटर (सवा दो फुट) की दूरी पर कतारों में करें|
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4. संकर किस्मों की बुवाई बीज रोपकर (डिबिलिंग) करें, इसमें एक किलो प्रति बीघा की दर से बीज की आवश्यकता होगी|
5. बीज की रोपाई पंक्ति से पंक्ति की दुरी 60 एवं पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर पर करें|
थिनिंग( विरलीकरण)
पहली सिंचाई के समय पौधों की दूरी 30 सेंटीमीटर रखें| एक बीघा क्षेत्र में पौधों की संख्या लगभग 12000 होगी| संकर किस्मों में पौधों की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें व इस प्रकार प्रति बीघा पौधों की संख्या लगभग 6200 रहेगी|
खाद एवं उर्वरक
मुख्य उर्वरक (नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश)
सड़ी हुई गोबर की खाद का फसल चक्र में अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए| नरमा की फसल में 25 किलो नत्रजन प्रति बीघा की दर से उपयोग करना चाहिए| फास्फोरस की मात्रा 10 किलोग्राम प्रति बीघा देनी चाहिए| नत्रजन की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय ड्रिल कर दें और इसके साथ 5 किलोग्राम पोटाश प्रति बीघा देना चाहिए| यदि बुवाई के समय नत्रजन उर्वरक नहीं प्रयोग किया जा सके तो इसे प्रथम सिंचाई के समय अवश्य दें|
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नत्रजन की शेष मात्रा कलियां बनते समय सिंचाई के समय दें|अच्छी पैदावार हेतु अमेरिकन कपास में सल्फर और जिंक जैसे सूक्ष्म तत्वों भी आवश्यकतानुसार देने चाहिए| कपास में पोषक तत्वों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास में पोषक तत्व प्रबंधन कैसे करें, जानिए उत्तम पैदावार की विधि
निराई-गुड़ाई
नरमा के खेत में खरपतवार नहीं पनपने दें| इसके लिए निराई-गुड़ाई सामान्यतः पहली सिंचाई के बाद बतर आने पर करनी चाहिए| इसके बाद आवश्यकतानुसार एक या दो बार त्रिफाली चलायें| रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डामेथालिन 30 ई सी, 833 मिलीलीटर या ट्राइफ्लूरालीन 48 ई सी, 780 मिलीलीटर को 150 लीटर पानी में घोलकर प्रति बीधा की दर से फ्लेट फेन नोजल से उपचार करने से नरमें की फसल प्रारम्भिक अवस्था में खरपतवार विहीन रहती है| इनका प्रयोग बिजाई से पूर्व मिट्टी पर छिड़काव भली-भांति मिलाकर करें| प्रथम सिंचाई के बाद एक बार गुड़ाई करना लाभदायक रहता है|
सिंचाई प्रबंधन
नरमा के लिए पलेवा के अलावा 6 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है| प्रथम सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन के बाद करें, बाद की सिंचाई 20 से 25 दिन के अन्तर पर करें| अन्तिम सिंचाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में करें| अगर पानी की कमी हो तो पांच सिंचाईयों से भी काम चल सकता है| इसके लिए पहली व दूसरी सिंचाई ऊपर बताये समय पर ही करें| इसके बाद तीसरी, चौथी व पांचवी सिंचाई एक माह के अन्तर पर करें|
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हाईब्रिड नरमा में बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से सिफारिश किये गये नत्रजन और पोटाश (फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय) की मात्रा 6 बराबर भागों में दो सप्ताह के अन्तराल पर ड्रिप संयंत्र द्वारा देने से सतही सिंचाई की तुलना में ज्यादा उपयुक्त पायी गयी| इस पद्वति से पैदावार बढ़ने के साथ-साथ सिंचाई जल की बचत, रूई की गुणवत्ता में बढ़ौतरी तथा कीड़ों के प्रकोप में भी कमी होती है|
फूल व टिण्डों के गिरने की रोकथाम
स्वतः गिरने वाली पुष्प कलियों एवं टिण्डों को बचाने के लिए एसीमोन या प्लानोफिक्स का 2.5 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी में घोल बनाकर पहला छिड़काव कलियाँ बनते समय और दूसरा टिण्डों के बनना शुरू होते ही करना चाहिए|
रोग नियंत्रण
ब्लेकआर्म
इस रोग की रोकथाम के लिए कीटनाशक दवाओं के छिड़काव करते समय निम्न दवाओं को प्रति 100 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|
1. स्ट्रेप्टोसाईक्लिन 5 से 10 ग्राम या प्लाटोमाइसीन या पोसामाइसीन 50 से 100 ग्राम|
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2. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत, 300 ग्राम| अधिक रोग व कीट नियंत्रण की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- कपास में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें, जानिए आधुनिक तकनीक
डिफोलिएसन नियंत्रण
नरमा कपास की फसल में पूर्ण विकसित टिण्डे खिलाने हेतु 50 से 60 प्रतिशत टिण्डे खिलने पर 50 ग्राम ड्राप अल्ट्रा को 150 लीटर पानी में घोल कर प्रति बीघा की दर से छिड़काव करने के 15 दिन के अन्दर करीब-करीब पूर्ण विकसित सभी टिण्डे खिल जाते हैं| ड्राप अल्ट्रा का प्रयोग करने का उपयुक्त समय 20 अक्टूबर से 15 नवम्बर है| इसके प्रयोग से कपास की पैदावार में वृद्धि पाई गई है| गेहूं की बिजाई भी समय पर की जा सकती है|
जिन क्षेत्रों में नरमा कपास की फसल अधिक वानस्पतिक बढ़वार करती है, वहाँ पर फसल की अधिक बढ़वार रोकने के लिए बिजाई 90 दिन उपरान्त वृद्धि निपवण रसायन लियोसीन का 100 लीटर पानी में 5 मिलीलीटर की दर से मिलाकर एक छिड़काव करें|
नरमे की चुनाई
प्रथम चुनाई 50 से 60 प्रतिशत टिण्डे खिलने पर शुरू करें और दूसरी चुनाई शेष टिण्डों के खिलने पर करें|
फसक की कटाई
नरमा चुनने के बाद फसल की कटाई यथा शीघ्र करें और खेत से दूर हटा देंवे| इस प्रक्रिया से अगले वर्ष कीटों का प्रकोप कम किया जा सकता है|
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नरमा कपास की उपज
उपरोक्त उन्नत कृषि विधियों द्वारा अमेरिकन कपास की उपज 5 से 6 क्विंटल प्रति बीघा ली जा सकती है| हाईब्रिड (संकर) किस्म की उपज 7 से 8 क्विंटल प्रति बीघा ली जा सकती है|
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