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मसूर की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, खाद तत्व, देखभाल, उत्पादन

November 15, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

मसूर की जैविक खेती

मसूर की जैविक या परम्परागत खेती प्रमुख रूप से दाल के लिए की जाती है| इसकी दाल अन्य दालों की अपेक्षा अधिक पोष्टिक होती हैं| मसूर के 100 ग्राम दाने में औसतन 25 ग्राम प्रोटीन, 1.3 ग्राम वसा, 60.8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3.2 ग्राम रेशा, 68 मिलीग्राम कैल्सियम, 7 मिलीग्राम लोहा, 0.21 मिलीग्राम राइबोफ्लेविन, 0.1 मिलीग्राम थाइमिन और 4. 8 मिलीग्राम नियासिन पाया जाता है|

रोगियों के लिए मसूर की दाल अत्यन्त लाभप्रद मानी जाती है| इसका प्रोटीन उबालने पर शीघ्र घुलनशील होने के कारण अन्य दालों की तुलना में कम समय में पक जाता है| दानों का प्रयोग नमकीन और मिठाईयां बनाने में भी किया जाता है| हरा एवं सूखा चारा जानवरों के लिए स्वादिष्ट तथा पौष्टिक होता है|

दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ों में गांठ पाई जाती है, जिसमें उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु वायुमण्डल की स्वतंत्र नाइट्रोजन का स्थिरीकरण भूमि में करते हैं| इसलिए फसल चक्र में इसे शामिल करने से भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है| भूमि क्षरण को रोकने के लिए मसूर को आवरण फसल के रूप में भी उगाया जाता है|

यह भी पढ़ें- अलसी की जैविक खेती कैसे करें

मसूर की जैविक खेती के लिए उपयुक्त भूमि

मसूर की खेती के लिए बलुई दोमट एवं मध्यम दोमट मिट्टी उत्तम रहती है| अच्छी फसल के लिए मिट्टी का पी एच मान 5.8 से 7.5 के बीच होना चाहिए| अधिक क्षारीय और अम्लीय मृदा मसूर की खेती के लिए उपयुक्त नही है|

मसूर की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी

खरीफ फसल काटने के बाद 2 से 3 आड़ी खड़ी जुताइयां देसी हल या कल्टीवेटर से की जाती है| प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चलाकर मिट्टी बारीक तथा समतल बना लेते हैं| बोने के समय खेत में पर्याप्त नमी रहनी चाहिये|

मसूर की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में

नूरी (आई पी एल- 81)- यह अर्द्ध फैलने वाली और शीघ्र पकने 110 से 120 दिन वाली किस्म है| इसकी औसत उपज 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| 100 दानो का वजन 2.7 ग्राम है| यह किस्म संपूर्ण मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है|

मलिका (के- 75)- यह 120 से 125 दिनों में पकने वाली उकठा निरोधी किस्म है| बीज गुलाबी रंग के और बड़े आकार का 100 बीजो का भार 2.6 ग्राम के होते हैं, औसतन 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है|

लेन्स 4076- यह देरी से 135 से 140 दिनों में पककर तैयार होती है| पौध मध्यम फैलावदार और बड़े दाने वाली किस्म 100 बीजो का भार 2.8 ग्राम होता है| इसकी औसत उपज 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है| गेरूआ और उकठा निरोधी किस्म है| उत्तरी और मध्य क्षेत्र के सिंचित एवं असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है|

आर वी एल 31- यह 107 से 110 दिनों में पककर तैयार होने वाली किस्म है, जो 14 से 15 क्विंटल औसत उत्पादन देती है| यह बड़े दानों वाली किस्म 3.0 ग्राम प्रति 100 बीज है| मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है|

विशेष- किसान भाई अपने क्षेत्र की ही प्रमाणित, चर्चित और उन्नतशील किस्म उगाएँ, क्योंकि हर किस्म अपने क्षेत्र विशेष के लिए उपयोगी होती है|

यह भी पढ़ें- सरसों की जैविक खेती कैसे करें

मसूर की जैविक खेती के लिए बीज दर

मसूर की जैविक खेती में अधिक उपज के लिए खेत में पर्याप्त पौध संख्या होना आवश्यक है| इसके लिए प्रमाणित किस्म का स्वस्थ बीज संस्तुत मात्रा में प्रयोग करना अनिवार्य है| समय पर बुवाई हेतु उन्नत किस्मों का 30 से 35 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है| विलम्ब से बुवाई करने की दशा में 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर बोना चाहिए|

मसूर की जैविक खेती के लिए बीज उपचार

स्वस्थ बीजों को बुवाई के पूर्व ट्राइकोडरमा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें| इसके उपरांत बीजों को मसूर के राइजोबियम कल्चर एवं स्फुर घोलक जीवाणु खाद प्रत्येक का 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर छायादार स्थान में सुखाकर बुवाई करना चाहिए|

मसूर की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय

मसूर की बुआई अक्टूबर से दिसम्बर तक होती है| परन्तु अधिक उपज के लिए मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर का समय उपयुक्त है| ज्यादा विलम्ब से बुवाई करने पर कीट व्याधि का प्रकोप ज्यादा होता है| देर से बोने पर यदि भूमि में नमी कम हो तो सिंचाई करने के पश्चात् बोना चाहिए|

यह भी पढ़ें- गेहूं की जैविक खेती कैसे करें

मसूर की जैविक खेती के लिए बुवाई की विधि

खेत में पर्याप्त नमी होने पर विशेषकर धान वाले खेतों में मसूर की बुआई छिटकवां विधि से की जाती है| परन्तु अच्छी उपज के लिए कतार में उगाना उत्तम है| इसके लिए हल या सीड ड्रील का उपयोग करना चाहिए| अगेती फसल की बुआई पंक्तियों में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर करना चाहिए| पिछेती फसल की बुआई के लिए पंक्तियों की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखते हैं| बीज को 3 से 4 सेंटीमीटर निचे बोना लाभप्रद रहता है|

मसूर की जैविक फसल में सिंचाई प्रबंधन

मसूर से सूखा सहन करने की क्षमता होती है| सामान्य तौर पर सिंचाई नहीं की जाती है| फिर भी सिंचित क्षेत्रों में 1 से 2 सिंचाई करने से उपज में वृद्धि होती है| पहली सिंचाई शाखा निकलते समय अर्थात् बुआई के 30 से 35 दिन बाद और दूसरी सिंचाई फलियों में दाना भरते समय बुआई के 70 से 75 दिन बाद करना चाहिए|

ध्यान रखें- कि पानी अधिक न होने पावे तथा संभव हो तो स्प्रिंकलर से सिंचाई करें या खेत में स्ट्रिप बनाकर हल्की सिंचाई करना लाभकारी रहता है| अधिक सिंचाईयां मसूर की फसल के लिए लाभकारी नही रहती हैं| खेत में जल निकास का उत्तम प्रबंध होना आवश्यक है|

मसूर की जैविक फसल में खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार प्रकोप से मसूर की उपज घट जाती है| मसूर बुआई से 45 से 60 दिन तक खेत खरपतवार मुक्त रहना आवश्यक है| बुवाई के 25 से 30 दिन बाद एक निंदाई गुड़ाई करने से उपज में वृद्धि होती है|

मसूर की जैविक खेती और फसल पद्धति

मसूर की खेती खरीफ की फसलें जैसे- धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास आदि लेने के बाद की जाती है| मसूर की मिश्रित खेती जैसे सरसों + मसूर, जौ + मसूर का भी प्रचलन है| शरदकालीन गन्ने की दो कतारों के बीच मसूर की दो कतारें 1:2 बोई जाती है| इसमें मसूर को 30 सेंटीमीटर की दूरी पर उगाया जाता है|

यह भी पढ़ें- चने की जैविक खेती कैसे करें

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