• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
Dainik Jagrati Logo

दैनिक जाग्रति

Dainik Jagrati (दैनिक जाग्रति) information in Hindi (हिंदी में जानकारी) - Health (स्वास्थ्य) Career (करियर) Agriculture (खेती-बाड़ी) Organic farming (जैविक खेती) Biography (जीवनी) Precious thoughts (अनमोल विचार) Samachar and News in Hindi and Other

  • खेती-बाड़ी
  • करियर
  • स्वास्थ्य
  • जैविक खेती
  • अनमोल विचार
  • जीवनी
  • धर्म-पर्व

सोयाबीन की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

Author by Bhupender Leave a Comment

सोयाबीन की जैविक खेती

सोयाबीन एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है| सोयाबीन की जैविक खेती आज की आवश्यकता बन गई है| क्योकि वर्तमान में किसानों को सरकारी प्रोत्साहन और जैविक उत्पादों को मिलने वाले उचित मूल्यों के कारण जैविक पद्धति से उगाई गई सोयाबीन की विश्व में मांग बढ़ी है| जिससे मुख्यतः तेल उत्पादन के अलावा सोयाबीन का सोया पनीर, सोया दूध और सोया आटा बनाने के साथ-साथ कई किण्वित उत्पाद जैसे सोया सॉस तथा बिस्किट उत्पादन के लिये उपयोग किया जाता है|

सोयाबीन की जैविक खेती से उत्तम पैदावार के लिए किसान बन्धुओं को अपने क्षेत्र की प्रचलित उन्नत किस्म उगाने, संतुलित पोषक तत्वों, खरपतवार प्रबंधन और पौध संरक्षण की और विशेष ध्यान देना चाहिए| इस लेख में सोयाबीन की जैविक खेती कैसे करें की आधुनिक तकनीक का विस्तृत उल्लेख है| सोयाबीन की परम्परागत उन्नत खेती की जानकारी यहाँ पढ़ें- यह भी पढ़ें- सोयाबीन की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार

यह भी पढ़ें- एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) का उपयोग खेती में कैसे करें, जानिए आधुनिक विधि

उपयुक्त भूमि

रेतीली दोमट से दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास का उचित प्रबंध हो इस फसल के लिये उपयुक्त पाई गई है| मिट्टी का पी एच मान 6 से 6.5 होना चाहिये, ताकि नत्रजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया अपना काम सुचारू रूप से कर सकें|

उन्नत किस्में

जे एस- 325, पी के- 472, जे ऐ- 7105, एन आर सी- 7, एन आर सी- 12, प्रताप सोया- 1, प्रताप सोया- 2, जे एस- 93-05 इत्यादि क्षेत्रवार सिफारिश अनुसार बोनी करें| सोयाबीन की उन्नत किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- सोयाबीन की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

खेत की तैयारी और उपचार

सोयाबीन की जैविक खेती के लिए फसल की अच्छी वृद्धि के लिये खेत को भली-भांति तैयार करना चाहिये| गर्मी के मौसम में एक गहरी जुताई करनी चाहिये, जिससे भूमि में उपस्थित कीड़े, रोग और खरपतवार के बीजों की संख्या में कमी होती है तथा भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है| अंतिम जुताई के समय नीम की खली से 200 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से भूमि उपचार करें|

बुआई का समय और विधि

बुआई का समय- सोयाबीन की बुवाई मानसून आने के साथ ही करना चाहिये| बुवाई के समय भूमि में कम से कम 10 सेंटीमीटर की गहराई तक पर्याप्त नमी होनी चाहिये| सोयाबीन की बुवाई के लिये जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह उपयुक्त समय है| देरी से बुवाई करने पर पैदावार में कमी होती है| जहाँ सिंचाई का साधन उपलब्ध हो वहां वर्षा का इंतजार न करते हुए पलेवा देकर बुवाई करें|

बीज दर- सोयाबीन की जैविक खेती हेतु बीज की मात्रा 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिये|

यह भी पढ़ें- सोयाबीन में एकीकृत कीट प्रबंधन कैसे करें, जानिए आधुनिक उपाय

बीजोपचार- सोयाबीन की जैविक खेती हेतु बोने से पूर्व बीजों को अवश्य उपचारित करें| ट्राइकोडर्मा जैविक फंफूदीनाशक से 6 ग्राम प्रति किलो बीज दर से बीजोपचार करें| इसके पश्चात् बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करना आवश्यक है| इस हेतु एक लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड़ का घोल बनायें और ठण्डा करने के बाद 500 ग्राम राइजोबियम कल्चर तथा 500 ग्राम पी एस बी कल्चर प्रति हेक्टर की दर से मिलायें, कल्चर मिले घोल को बीजो में हल्के हाथ से मिलायें जिससे सारे बीजों पर एक समान परत चढ़ जाये, फिर छाया में सुखाकर तुरंत बो देना चाहिये||

बुआई विधि- सोयाबीन की जैविक खेती हेतु बुआई के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेंटीमीटर व पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिये| बीज 3 से 4 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरा नहीं होना चाहिये|

खाद प्रबंधन

चूंकि इस फसल के लिए पी एच मान 6 से 6.5 होना चाहिये, इसलिये अम्लीय भूमि में 3 टन चूना प्रति हेक्टेयर व क्षारीय भूमि में रॉकफॉस्फेट 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालने से पैदावार में बढ़ोत्तरी की जा सकती है| केंचुआ खाद 7.5 टन या देसी खाद 10 टन प्रति हेक्टेयर बुआई के समय डालें और तरल जैविक वर्मीवाश के तीन छिडकाव बुआई के 15, 30 तथा 45 दिन के बाद खड़ी फसल में 1:10 (खाद पानी) की मात्रा में करें|

सिंचाई प्रबंधन

सोयाबीन की फसल को वैसे तो सामान्य वर्षा की स्थिति में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु फूल आने और फलियों में दाना बनते समय पानी की कमी नहीं होने देना चाहिये| इसलिए उस समय वर्षा नहीं हो तो आवश्यकतानुसार 1 से 2 सिंचाईयाँ करें|

निंदाई-गुड़ाई

सोयाबीन की जैविक खेती हेतु खरपतवारों को नियंत्रण में रखने के लिए फसल की प्रारंभिक अवस्था में दो बार निंदाई-गुड़ाई अवश्य करनी चाहिये| खरपतवारों को उखाड़कर खेत में ही मिला देना चाहिए| मल्चिंग का प्रयोग करने से खरपतवारों की समस्या को कम किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- सोयाबीन की फसल में पोषक तत्व एवं खरपतवार प्रबंधन कैसे करें

कीट रोकथाम

चक्र मूंग

लक्ष्ण- इस कीट का प्रकोप फसल के दो अवस्थाओं पर होता है| जिससे हानि भिन्न होती है, जैसे-

वृद्धि की प्राथमिक अवस्था- इस दशा में बीज अंकुरण के करीब 15 से 17 दिनों पश्चात् पौधों की उंचाई 15 से 28 सेंटीमीटर होने पर कीट प्रकोप आरंभ होता है| प्रकोपित पौधों में से 36 प्रतिशत के लगभग पौधे कीट प्रकोप के कारण प्रकोप के 8 से 10 दिनों पश्चात् मर जाते हैं| 48 से 50 प्रतिशत पौधे जीवित रहते हैं, पर इनमें फल्लियों या दाने नही बनते है|जबकी 15 प्रतिशत पौधों में फल्लियॉ तो लगती है, पर दाने की संख्या, भार और अंकुरण क्षमता काफी कम होती है और इन पौधों की पैदावार सामान्य से 83 प्रतिशत तक कम होती है|

फसल वृद्धि के बाद की अवस्था- इस दशा में फसल के डेढ से दो माह की यानि 25 से 55सेंटीमीटर की होने पर कीट प्रकोप के कारण पौधे की मृत्यु नही होती है| इस समय प्रकोपित पौधे में सामान्य प्रति पौधा कीट की एक ही इल्ली पाई जाती है| जबकि प्राथमिक वृद्धि अवस्था में होने वाले कीट प्रकोप से पैदावार में हानि 67 प्रतिशत तक होती पाई गई है| औसतन एक प्रतिशत पौधे कट कर गिरने से 5 से 6 किलोग्राम और 25 प्रतिशत पौधे में प्रकोप होने की दशा में 135.75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की कमी होती पाई गई है|

रोकथाम

1. फसल की बुआई समय से जुलाई में करें|

2. समय पूर्व बुआई करने पर कीट प्रकोप ज्यादा होता है|

3. बुआई हेतु अनुशंसित बीज दर का उपयोग करें, ज्यादा बीज दर वाली फसल में ज्यादा कीट प्रकोप होता है|

4. जिन क्षेत्रों में कीट प्रकोप प्रतिवर्ष होता है. वहॉ पर ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई अवश्य करें|

5. सोयाबीन की जैविक खेती हेतु मेढ़ों की सफाई करें और समय से खरपतवार नियंत्रण करें|

6. भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों में जल निकास की उचित व्यवस्था करें|

7. फसल कटाई समय से करें और खलिहान में उड़ावनी पश्चात् कीट द्वारा कटे तने के टुकड़े एकत्रित करें|

8. जुलाई से अगस्त में कीट की प्रारंभिक प्रकोप अवस्था के समय कीट प्रकोप के कारण पौधों की पत्तियॉ या टहनियॉ मुरझाते ही तोड़ कर नष्ट करें|

9. फसल की 35, 45 और 55 दिनों की अवस्था पर 5 प्रतिशत निम्बोली के घोल का छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- सोयाबीन में कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें, जानिए उपयोगी तकनीक

हरी अर्धकुण्डलक कीट

लक्षण- कीट की इल्ली अवस्था में फसल में हानि पहुँचती है| बड़ी अवस्था में इल्ली पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाती है, पर ज्यादा हानि इस कीट की इल्ली द्वारा कली, फूल और शुरूआती वृद्धि अवस्था की फल्लियों को खाने से होती पाई गई है| जिससे अफलन की स्थिति भी बन सकती है| छोटी फल्लियों को यह कुतर कर खाती है, पर फल्लियॉ बड़ी होने पर विकसित फल्लियों में ऊपर से छेद कर सिर्फ दानों को खाती है| प्रकोप फलस्वरूप काफी अधखाई फल्लियॉ जमीन पर गिरी मिलती है|

रोकथाम

1. जिन स्थानों पर कीट प्रकोप होता है, वहाँ प्रकाश प्रपंच का उपयोग कर वयस्क शलभों को नष्ट करें|

2. सोयाबीन की जैविक फसल को खरपतवार विहीन रखें|

3. अगर सिंचाई का प्रबंध हो तो खेत में पानी दें, कीट के अण्डे 5 दिनों तक, इल्लियाँ 15 मिनिट तक और शंखी 8 घंटे तक पानी में जीवित रह सकती है|

4. यदि कीट प्रकोप पूरी फसल में ना हो कर सिर्फ खेत के छोटे हिस्से में सीमित हो तो इल्लियॉ जमीन से निकाल कर नष्ट करें|

5. सोयाबीन की जैविक खेती हेतु फसल कटने के बाद खेतों की गहरी जुताई करें|

6. कीट ग्रसित खेत में, विशेषकर जहॉ प्रकोप देखा जा रहा हो, शाम को जगह-जगह घास के ढेर लगा दें, रात्री में बाहर निकली इल्लियाँ इन ढेरों के नीचे छिप जाती है, जहाँ से इन्हें आसानी से इक्ट्ठा कर नष्ट किया जा सकता है|

7. प्रति हेक्टेयर 1 किलोग्राम बी टी (बेसिलस थूरिन्जिएसिस) का छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- मूंगफली की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

डायक्रीसिया ओरीचकल्सिया

लक्षण- कीट की इल्ली अवस्था हानिकारक होती है| नवजात इल्लियॉ फसल की कोमल पत्तियों को खुरच कर खाती है| विकसित इल्लियाँ पत्तियों को खा कर हानि पहुंचाती है| ज्यादा प्रकोप की दशा में पौधे का केवन तना और शिरायें बची रह जाती है| पत्तियॉ कड़ी हो जाने पर इल्लियाँ छोटी फल्लियों को पूर्णतः और बड़ी फल्लियों के दाने छेद कर खाती है| इल्लियॉ कली तथा फूलों को भी खाकर हानि पहुंचाती है| फल्लियाँ लगने से प्राथमिक फली विकास की अवस्था में ज्यादा प्रकोप होने पर फसल पैदावार में अप्रत्याशित रूप से कमी होती है|

रोकथाम

1. प्रकाश प्रपंच लगाकर बरसात के शुरू से ही प्रौढ़ कीटों को आकर्षित करके नष्ट किया जा सकता है|

2. चूंकि ये अपने अण्डे समूह में देते है, इसलिए पत्तियों का समय-समय पर निरीक्षण करके उन्हें नष्ट कर सकते है|

3. मेढ़ों की सफाई करें और समय से खरपतवार नियंत्रण करें|

4. भारी मिट्टी वाले क्षेत्रों में जल निकास की उचित व्यवस्था करें|

5. फसल कटाई समय से करें एवं खलिहान में उड़ावनी पश्चात् कीट द्वारा कटे तने के टुकड़े एकत्रित करें|

6. जुलाई से अगस्त में कीट की प्रारंभिक प्रकोप अवस्था के समय कीट प्रकोप के कारण पौधों की पत्तियॉ या टहनियॉ मुरझाते ही तोड़ कर नष्ट करें|

7. सोयाबीन की जैविक फसल की 35, 45 और 55 दिनों की अवस्थाओं पर 5 प्रतिशत निम्बोली के घोल का छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- मूंग एवं उड़द की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

भूरी धारीदार अर्धकुण्डलक कीट

लक्षण- फूल अवस्था के पहले कीट इल्लियाँ पत्तियों को खा कर और बाद में फसल की कड़ी पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाती है| नवजात कीट इल्लियॉ शुरूआत में कोमल पत्तियों को सिरे से खाती है और बाद में बड़ी होने पर इल्लियों पूर्ण पत्ती खाकर फसल को नुकसान पहुंचाती है| प्रकोप ज्यादा होने की दशा में यह कीट पौधों को पत्ती विहीन कर देता है| इस कीट की इल्लियाँ भी पत्ती खाने की क्षमता अर्धकुण्डलक इल्लियों काफी ज्यादा होती है| इसका प्रकोप कम वर्षा या सूखे की दशा में ज्यादा होता है|

रोकथाम

1. जिन स्थानों पर कीट प्रकोप होता है, वहाँ प्रकाश प्रपंच का उपयोग कर वयस्क शलभों को नष्ट करें|

2. सोयाबीन की जैविक फसल को खरपतवार विहीन रखें|

3. अगर सिंचाई का प्रबंध हो तो खेत में पानी भरें|

4. कीट के अण्डे 5 दिनों तक, इल्लियाँ 15 मिनट तक और शंखी 8 घंटों तक पानी में जीवित रह सकते है|

5. यदि कीट प्रकोप पूरी फसल में ना हो कर सिर्फ खेत में छोटे-छोटे हिस्सों में सीमित हो तो इल्लियों को जमीन से निकाल कर नष्ट करें|

6. फसल कटने के बाद खेतों की गहरी जुताई करें|

7. प्रति हैक्टेयर 1 किलोग्राम बी.टी. (बेसिलस थूरिन्जिएसिस) का छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- जैविक कृषि प्रबंधन के अंतर्गत फसल पैदावार के प्रमुख बिंदु एवं लाभ

तम्बाकू की इल्ली

लक्षण- कीट की इल्ली अवस्था नुकसान करती है| नवजात इल्लियॉ 3 से 4 दिनों तक समूह में रहती है और पत्तियों का पूर्ण हरित खुरचकर खाती है| जिससे ग्रसित पत्तियॉ जालीदार हो जाती है, जो कि दूर से ही देखकर पहचानी जा सकती है, बाद में विकसित इल्लियाँ पत्तियों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाती है| फली आने पर इल्लियॉ फली को कुतर-कुतर कर खाती है|

जबकी विकसित फल्लियों में छेद कर अन्दर के दाने खाकर नुकसान करती है| कीट की आर्थिक हानि सीमा स्तर फसल में फूल लगने के पूर्व की अवस्था में 10 इल्लियाँ प्रति मीटर और फल्लियाँ लगने की अवस्था में 3 इल्लियाँ प्रति मीटर है|

ज्यादा प्रकोप की दशा में फसल की 30 से 50 प्रतिशत तक फल्लियाँ ग्रसित होती पाई जाती है| यह कीट सोयाबीन में लघु कीट के रूप में रहता हैं, पर अनुकूल वातावरण मिलने पर यह प्रचंड रूप से बहुगुणित हो फसल को अत्यधिक नुकसान पहुँचाने की क्षमता रखता है| इस स्थिति में कीट द्वारा फसल की शतप्रतिशत पत्तियाँ और फल्लियाँ खाकर नुकसान पहुँचाता पाया गया है|

रोकथाम

1. गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें|

2. खेतों में टी आकार के पक्षी ठिकान 8 से 10 मीटर की दूरी पर लगायें|

3. खेतों में स्पोडोप्टेरा फरामोन ट्रेप प्रति 15 से 20 हेक्टेयर लगाये|

4. खेतों में अण्डे दिखाई देते ही ट्राइको कार्ड लगायें|

5. प्रारंभिक अवस्था में अंडों के समूह और सुंडियों को एकत्रित करके नष्ट किया जा सकता है|

6. मेड़ों की सफाई करें और सोयाबीन की बुआई 18 इंच पर करें|

7. खेतों के चारों तरफ अरण्डी की एक कतार लगाये और प्रारंभिक अवस्था में इन पौधों पर शलभ द्वारा दिये गये अण्डे तथा नवजात इल्लियों पर एन पी बी (स्पोडोपटेरा) 250 इल्लियाँ समतुल्य की दर से छिड़काव करें|

8. छिड़काव पत्तियों की ऊपरी व निचली दोनों सतह पर होना जरूरी है|

9. बेसीलस थूरिन्जिएसिस नामक जीवाणु का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें, प्राकृतिक शत्रु प्युपिवोरा प्रोडेनिया सुंडी पर परजीवी और ट्राइकोस्पाइलस प्युपिवोरा कृमिकोष पर परजीवी होता है|

यह भी पढ़ें- ब्युवेरिया बेसियाना का उपयोग खेती में कैसे करें, जानिए आधुनिक विधि

सफेद मक्खी

लक्षण- कीट की शिशु और वयस्क दोनों अवस्थायें पौधों की कोमल पत्तियों एवं तने या शाखाओं से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाते है| शिशु आमतौर पर कोमल पत्ती की निचती सतह, तने या शाखाओं पर एक जगह चिपक कर रस चूसते हैं| वयस्क मक्खी भी इसी प्रकार से पौधों का रस चूसती है, पर शिशु की तरह एक जगह न रह कर उड़ने के कारण अलग-अलग पत्तियों और कई पौधों को प्रकोपित कर हानि पहुँचाती है| फसल पर इस कीट के कारण तीन तरह से हानि पहुँचती है| एक सतह पर शिराओं के पास धागेनुमा आधार के पास गोल चौड़े तथा ऊपर की ओर क्रमशः संकरे होते हुए ऊपरी छोर पर नुकीले दिखते है|

रोकथाम

1. सोयाबीन की जैविक खेती हेतु फसल की बुआई समय पर करें|

2. नत्रजन युक्त उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा समय पर डालें|

3. इन उर्वरकों की ज्यादा मात्रा या समय उपरांत उपयोग न करें|

4. फसल में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण करें, विशेषकर ऐसे खरपतवार जिनमें पीला रंग समावेशित होता है, को निकाल कर नष्ट करें|

5. अगस्त से सितम्बर के बीच प्रकोप की शुरूआत होते ही नीम बीज घोल 5 प्रतिशत का छिड़काव करें|

रोग रोकथाम

भूरा धब्बा- यह बीमारी फसल में फूल आने पर आती है| पौधों पर लाल भूरे व टेढ़े-मेढ़े धब्बे जो कि किनारों से हल्के हरे होते हैं प्रकट होते हैं| अधिक प्रकोप होने पर पत्तियॉ गिर जाती है|

रोकथाम

1. बिजाई के लिए रोग-रहित बीज का प्रयोग करें |

2. रोग प्रतिरोधी किस्में ही लगायें|

यह भी पढ़ें- बाजरा की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल एवं पैदावार

पीला मोजेक- इस बीमारी में पत्ते व पौधे छोटे रह जाते हैं| पत्तों पर झुर्रियां पड़ जाती है, फलियां बहुत थोड़ी लगती है|

रोकथाम

1. सोयाबीन की जैविक खेती हेतु विषाणु रहित बीज का प्रयोग करें|

2. सोयाबीन की जैविक में ग्रस्त पौधों को प्रकट होते ही निकाल दें|

3. सोयाबीन की जैविक खेती हेतु हींग शोषित गौमूत्र (1:10) से बीजोपचार करें, साथ में पीला चिपचिपा कार्ड का उपयोग करें|

4. सोयाबीन की जैविक खेती हेतु गौमूत्र (1:10) साथ में नीम तेल का छिड़काव करें|

फसल कटाई

जब पौधों के पत्ते पीले पड़ जाये व फलियों का रंग बदल जाए तो फसल को काट लेना चाहिये| दानों को चटकने से रोकने के लिए फसल को समय पर काट लेना चाहिए| फलियों को धूप में सुखाकर बीज निकाल लें|

पैदावार

यदि आप परम्परागत (रासायनिक) खेती से हटकर, सोयाबीन की जैविक खेती अपना रहें है, तो शुरुवात के 1 से 3 साल तक पैदावार में 5 से 15 प्रतिशत गिरावट आ सकती हैं, लेकिन धीरे धीरे उत्पादन सोयाबीन की परम्परागत खेती की तुलना में सोयाबीन की जैविक खेती का उत्पादन अधिक होगा|

यह भी पढ़ें- जैविक खेती कैसे करें पूरी जानकारी

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Share this:

  • Click to share on Twitter (Opens in new window)
  • Click to share on Facebook (Opens in new window)
  • Click to share on LinkedIn (Opens in new window)
  • Click to share on Telegram (Opens in new window)
  • Click to share on WhatsApp (Opens in new window)

Reader Interactions

प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Primary Sidebar

इस ब्लॉग की सदस्यता लेने के लिए अपना ईमेल पता दर्ज करें और ईमेल द्वारा नई पोस्ट की सूचनाएं प्राप्त करें।

हाल के पोस्ट

  • बिहार में आबकारी सब इंस्पेक्टर कैसे बने, जाने पूरी प्रक्रिया
  • बिहार में प्रवर्तन सब इंस्पेक्टर कैसे बने, जाने भर्ती की पूरी प्रक्रिया
  • बिहार में पुलिस सब इंस्पेक्टर कैसे बने, जाने भर्ती प्रक्रिया
  • बिहार पुलिस सब इंस्पेक्टर परीक्षा पैटर्न और पाठ्यक्रम
  • बिहार में स्टेनो सहायक उप निरीक्षक कैसे बने, जाने पूरी प्रक्रिया

Footer

Copyright 2020

  • About Us
  • Contact Us
  • Sitemap
  • Disclaimer
  • Privacy Policy